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एक सन्नाटा…

आकाश महेशपुरी
आकाश महेशपुरी
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एक सन्नाटा…

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थे किये मैंने बहुत उपकार पर

रोज मिट्टी में मिलाती जा रही

आज दुनिया स्वार्थ में अंधी हुई

पाँव से ठोकर लगाती जा रही

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है अभी मेरे ज़हन में बचपना

सूखकर काटा मगर मैं हो गया

सोचता हूँ उम्र गुजरी ही नहीं

एक सन्नाटा मगर मैं हो गया

प्यार मुझसे क्यूँ करे कोई भला

जिन्दगी ही जब सताती जा रही-

आज दुनिया स्वार्थ में अंधी हुई

पाँव से ठोकर लगाती जा रही

● ● ● ● ● ● ● ● ●

मोह ने घेरा मुझे है सर्वदा

सर्वदा दुख ही दिया है मोह ने

सोचता हूँ मैं फिरूं आजाद हो

कब मुझे छोड़ा मगर इस छोह ने

उलझनों के साथ मिलकर देखिये

ये मुझे माया रुलाती जा रही

आज दुनिया स्वार्थ में अंधी हुई

पाँव से ठोकर लगाती जा रही

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कौन किसको पूछता है आजकल

वो पुराना दौर दिखता है कहाँ

है नहीं वो स्नेह ना वो मित्रता

अब दिखाई दे महज़ धोका यहाँ

हार जाएंगे अगर ना धैर्य हो

ये धरा सबको सिखाती जा रही

आज दुनिया स्वार्थ में अंधी हुई

पाँव से ठोकर लगती जा रही

 

गीत- आकाश महेशपुरी

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