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कितना भरमाया जाता है (कविता)

आकाश महेशपुरी
आकाश महेशपुरी
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कितना भरमाया जाता है
पूर्व जन्म का कर्म बताकर
स्वर्ग नर्क का मर्म बताकर
जाल बनाकर पाखण्डों का
कर्म-कांड को धर्म बताकर
कितना धमकाया जाता है-
कितना भरमाया जाता है
°°°
भूख सहोगे फूल खिलेगा
ऐसे कैसे पुण्य मिलेगा
मनुज मरा जो प्रेत बनेगा
दान दिया तो स्वर्ग हिलेगा
कितना बहकाया जाता है-
कितना भरमाया जाता है
°°°
रोटी कपड़ा गाड़ी इसकी
मरे मनुज को कहाँ जरूरत
कोई खाये कोई पाये
वो भी जिसकी दिखे न सूरत
कितना उलझाया जाता है-
कितना भरमाया जाता है
°°°
मात-पिता को नहीं दवाई
बच्चों की हो बन्द पढ़ाई
एक टका भी लगे अगर तो
पिंडदान शोषण है भाई
कितना तड़पाया जाता है-
कितना भरमाया जाता है

रचना- आकाश महेशपुरी

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