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‘चार पैसे का मैं भी बनूँगा कभी’ (कविता)

आकाश महेशपुरी
आकाश महेशपुरी
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गीत- चार पैसे का’ मैं भी बनूँगा कभी
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तुम भिखारी कहो या कहो अज़नबी
चार पैसे का’ मैं भी बनूँगा कभी

एक पागल मुझे कह रहा है जहाँ
ये जमीं ही रही ना मेरा आसमाँ
दरअसल धन नहीं तो है’ सारी कमी-
चार पैसे का’ मैं भी बनूँगा कभी

भाग्य होता है’ शायद तभी तो इधर
कर्म कर के भी’ टूटा हूँ’ मैं इस कदर
देखकर हँस रहे हैं सभी के सभी-
चार पैसे का’ मैं भी बनूँगा कभी

खा रहा आज भी हूँ सुबह से सितम
खा रहा ठोकरें खा रहा हूँ ये’ गम
पर नहीं पेट पूरा भरा है अभी-
चार पैसे का’ मैं भी बनूँगा कभी

गीत- आकाश महेशपुरी
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