आकाश महेशपुरी
- 166 Posts
- 22 Comments
ग़ज़ल- धन की जो किल्लत हो गयी है
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆
हमें धन की जो किल्लत हो गयी है
बिकाऊ ये मुहब्बत हो गयी है
हमारा आशियाना लुट गया जो
कि कुछ ज्यादा ही ज़िल्लत हो गयी है
भलाई की है मैंने हर किसी की
मगर उल्टे अदावत हो गयी है
निकलता घी नहीं सीधी तरह से
कि सच्ची ये कहावत हो गयी है
गली में घूमकर देखा कि सबकी
बड़ी बदरंग हालत हो गयी है
अभी ‘आकाश’ कुछ पैसे कमा लो
तेरी कितनी ज़लालत हो गयी है
ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆
वकील कुशवाहा “आकाश महेशपुरी”
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
पिन- 274304
मोबाईल- 9919080399
Read Comments