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आम आदमी

,एकता या अनेकता
,एकता या अनेकता
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क्या ये कोई बताएगा की आम आदमी गया कहाँ?कहा जाता है हमारी जनता द्वारा चुनी गयी सरकार आम आदमी का ही ख्याल रखती है.पर मैं जिस आदमी को जानता हूँ वोह तो एक ऐसा आदमी है जिसकी कमर झुकी हुयी है. वह सीधा खडा भी नै हो पारहां है.जो दिखाई दे रहा है वह है सिर्फ और सिर्फ कारपोरट वर्ल्ड. आज वही खुशी में समाया हुआ है.पर आम आदमी तो रो भी नहीं पारहा है.चाहे राज्य सरकार हो या केन्द्र की सभी इस आम आदमी के गम में दुबले होगये हैं. शायद इसी लिए केन्द्र वालों ने ६४८ करोड रुपये हवाई यात्रा में स्वः करदिये. शायद उस हवं से उनका दुबलापन कुछ कम हो. उन्होंने करीब तीस लाख की एक दावत ही थे डाली. उन्हें अपनी सेहत का भी तो देखना है. अगर उनकी सेहत ठीक नहीं होगी तो वे आम आदमी का ख्याल कैसे करेंगे.वैसे आम आदमी के लिए भी कुच्छ नए रेफोर्म (?) किये हैं डीज़ल पर पांच रुपये की बढ़ोतरी कर दी एलपीजी पर अभी छ सिलेडर और आगे वोह भी नहीं.अगर आम आदमी ठीक से खाना खायेगा तो आम आदमी कैसे कहलायेगा. आम आदमी तो वह हुआ जो भूखा सोये.
कहते हैं पुराना ज़माना अच्छा था.जब की मुसलमान बादशाह ऐश में थे और आम आदमी के पास पहन ने के कपडे और खाने के लिए अन्न नहीं था. आज की ये सरकार शायद आम आदमी को उसी जगह लेजाना छह रही है.इस झूठे जनतंत्र में ये चुनाव के नाटक ही क्यों किये जारहे हैं? इस से तो अच्छा राजतंत्र ही था. उस आम आदमी को यह संतोष तो था की हम तो आम आदमी हैं हमारी नियत ही यही है. मौज करने के लिए तो सिर्फ नेताओं को ही बनाया है.
कहते है दुनिया का चक्र चला करता है. जो आज ऊपर है कल वह नीचे ज़रूर ही आएगा. इसी आशा में बैठा है आज का आम आदमी.कब ये नेता उस आम आदमी के द्वार पर एक रोटी की भिक्षा मांगे?

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