,एकता या अनेकता
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देश में इस समय सही अर्थों में जन प्रतिनिधि हैं ही नहीं. क्योंकि जो प्रतिनिधि हैं वे पार्टी के नुमाइंदे हैं और उनकी स्वामिभक्ति पार्टी प्रमुख के लिए है न की जनता के प्रति.पार्टिओं में कोई आंतरिक लोकतंत्र है ही नहीं. देश आज १९वी शताब्दी के पूर्वार्ध में रह रहा है. प्रतियन, जिनमे कांग्रेस सबसे उपर है, में एकव्यक्ति का एकछत्र शासन है. उसे देश की भलाई से कुछ भी लेना देना है नहीं. जब तक इस जटिल स्थिति को नहीं सुधारा जाएगा कुछ भी अच्छा होंस मुश्किल है. कुछेक दल इसके अपवाद हैं पर वे अल्पमत में हैं.
जनता किन्कर्ताव्यविमूध होरही है. उसे सही दिशा चाहिए.
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