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महाभियोग प्रस्ताव : एक क्षुद्र राजनीती

hindi editorial
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राजनीती का सबसे निचले स्टार पर चले जाना यहाँ के लोगो के लिए खतरे की घंटी है. महाभियोग का प्रस्ताव सिर्फ इसलिए की मनचाह निर्णय नहीं मिला. मेरा यह मानना है की न्यायपालिका लोकतंत्र का एक स्वतंत्र आधार है और इससे राजनीती के डंडे से नहीं चलाया जाना चाहिए. इससे लोगो का विश्वास उठेगा और जजेज़ भी मनोवैज्ञानिक दबाव में आएंगे. कांग्रेस वर्तमान में राजनीती के निम्न स्टार पर गयी है और भारत के इतिहास में पहली बार एक मुख्या न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लायी है. हालाँकि इसको अंजाम तक पहुंचना बहुत कठिन है पर स्वार्थ के लिए यह प्रस्ताव लाना भी गलत है. जहाँ एक तरफ यह प्रस्ताव लाया जा रहा है वही दूसरी तरफ कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेता इससे दुरी बनाये हुए है. इसको लेकर कांग्रेस में भी एक मत नहीं है और इसका मतलब यह है की इस प्रस्ताव को लाना महज एक चुनावी स्टंट है. इस प्रस्ताव को उच्च सदन और निम्न सदन दोनों में दो तिहाई बहुमत से पास करना पड़ता है जो की संभव भी नहीं है. यह कांग्रेस की खीझ ही है की सभी बातो को जानते हुए भी इस प्रस्ताव को लेकर आयी है. सब मिलाकर सांसदों को मिले अधिकार का प्रयोग देश के सम्मानित पदों की पगड़ियां उछलने में करना गलत है.

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