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Meerut Gangrape Case:True Or False?

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अमर उजाला में मेरठ केस की कथित पीड़िता की बिल्कुल भिन्न बयान छपी है जो भी असत्य है क्योंकि

i.जिस सहेली निशात के साथ 29 जून को कॉलेज जाने पर उठा ले जाकर छेड़छाड़, सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया गया है,उसी निशात के साथ 23 जुलाई को वह डॉक्टर से मिलने निकली।फिर उसी निशात के साथ क्यों गई जो एक अभियुक्त की बहन भी है?

ii.29 जून,23 जुलाई से 27 जुलाई और 29 जुलाई से 3 अगस्त,इन अवधियों के दौरान लड़की गायब रही,फिर लड़की के माता-पिता ने MISSING या अपहरण का केस दर्ज क्यों नहीं कराया?

iii.लड़की के बयान के अनुसार छेड़छाड़ का विरोध करने पर परिवार वाले को जान से मारने का धमकी दी गई।धमकी दिए जाने के कारण ही उसने परिवार वाले को कुछ नहीं बताया।सामने चंगुल में लड़की है जो अपने जान की परवाह किए बगैर परिवार वाले की जान की परवाह करके चुप रहती है,ऐसा क्यों?धमकी का असर तभी माना जाएगा जब किसी आपराधिक प्रवृति के व्यक्ति ने धमकी दिया हो या अपने अधीन रखने वाले व्यक्ति ने धमकी दिया हो।

iv.निशात के साथ लड़की खुद डॉक्टर से मिलने निकली,अतः जबरन गर्भपात कराए जाने के बजाए आपसी सहमति से सेक्स करने की अवस्था में गर्भपात कराए जाने का यह स्थिति है।
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हमारे लिए आजादी का मतलब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में निहित स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तक ही सीमित हो गया है।मतलब,बोलने-लिखने,विरोध करने,संगठन बनाने,घूमने,रोजगार करने आदि की कागजी स्वतंत्रता मिल गई तो हम खुद को आजाद समझने लगे।यदि विरोध करना अनुच्छेद 19(1)(b) के तहत हमारा मौलिक अधिकार है तो फिर हम भ्रष्टाचारियों के विरुध्द विरोध करने से क्यों डरते हैं?हम जिस स्कूल,कॉलेज में पढ़ते हैं,वहाँ का कर्मचारी काम करने में घूस मांगता है,वहाँ का प्राचार्य एक नंबर का भ्रष्टाचारी होता है।फिर हम उनका विरोध क्यों नहीं करते?हमें डर लगता कि हमें किसी झूठे आरोप में फंसा दिया जाएगा या शारीरिक,मानसिक और आर्थिक रुप से प्रताड़ित किया जाएगा,इसलिए हम विरोध नहीं करते।विरोध करने वाले को इन प्रताड़नाओं को भुगतना ही पड़ता है और मुझे खुद भुगतना पड़ा है।जब पुलिस गुंडागर्दी करे तो हम डर के मारे चुप हो जाते हैं।जब ये हमारी स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार होने के बावजूद हम विरोध करने में डर जाते हैं,फिर हम आजाद कैसे?विरोध से मेरा तात्पर्य शांतिपूर्ण विरोध से है जिसकी स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(1)(b) के तहत प्रदान की गई है।

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As published on Facebook on dt. 14/8/2014….
कोर्स के बाहर का पूछा गया प्रश्न,फिर होगी 6 सितंबर को परीक्षा

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ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय,दरभंगा के दर्शनशास्त्र स्नातक प्रथम खंड के प्रथम पत्र का दिनांक 12/8/2014 को परीक्षा हुई,जिसमें Hons Paper-I के जगह Subsidiary Paper से प्रश्न पूछा गया।Hons Paper-I के कोर्स के मुताबिक भारतीय दर्शन के बारे में पढ़ना है जबकि Subsidiary Paper में Symbolic Logic के बारे में पढ़ना होता है ,जिससे प्रश्न पूछा गया,इसलिए Hons Paper के छात्र पास करने लायक सवाल का जवाब भी नहीं दे पाए।दिनांक 12/8/2014 को ही दर्शनशास्त्र के दो छात्र (कुणाल वैभव जी और अरबाज आलम जी) के साथ मैं विश्वविद्यालय के कुलपति से मिला ।कुलपति ने विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष को बुलाया।कुलपति ने फिर से परीक्षा आयोजित करने का आदेश दिया है।आज के समाचार पत्र के अनुसार कल परीक्षा बोर्ड की बैठक में 6 सितंबर को पुनः परीक्षा लेने का फैसला हुआ।दर्शनशास्त्र विभाग ने प्रश्नपत्र का चेकिंग किए बगैर सारे कॉलेज को प्रश्नपत्र भेजवा दिया।जब प्रश्नपत्र की चेकिंग भी नहीं की जाती,फिर उत्तर-पुस्तिका की सही तरीके से चेकिंग के बारे में सोचना भी मूर्खता है।

दिनांक 13 अगस्त 2014 को समाचार पत्र में
छपी खबर के मुताबिक ” परीक्षार्थियों ने विश्वविद्यालय के परीक्षा
नियंत्रक के पास इसके संबंध में शिकायत की है।परीक्षा नियंत्रक ने छात्रों
से शिकायत मिलने की पुष्टि करते हुए कहा है कि समस्या पर गंभारता से विचार
किया जा रहा है।”

जबकि खबर के विपरीत सच्चाई ये है कि हम सीधे कुलपति के पास चले गए जिसका
प्रमाण कुलपति कार्यालय द्वारा आवेदन के छायाप्रति पर दिया गया हस्ताक्षर
है और कुलपति ने पुनः परीक्षा लेने का मौखिक आदेश मेरे सामने में
दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष को दिया था।इसलिए परीक्षा बोर्ड की बैठक में
सिर्फ औपचारिक निर्णय लेना बाकी था।
परीक्षा नियंत्रक के द्वारा गलत खबर मीडिया में छपवायी गई और कुलपति के पास
शिकायत किए जाने और कुलपति द्वारा पुनः परीक्षा लेने का आदेश देने के बारे
में परीक्षा नियंत्रक ने मीडिया को नहीं बताया ताकि परीक्षा नियंत्रण
विभाग और दर्शनशास्त्र विभाग इस बदनामी से बच सके कि उनके विरुध्द कुलपति
के पास शिकायत कर दी गई।

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As Published on Facebook on dt. 14/8/2014……..

आज
मुझे 4-5 लड़के ने पूछा कि मैं कल स्वतंत्रता दिवस मनाने कॉलेज जाऊँगा या
नहीं।मेरा स्पष्ट जवाब था कि हम अभी भी गुलाम हैं,इसलिए मैं स्वतंत्रता
दिवस नहीं मनाता।मैं 15 अगस्त 2011 से अभी तक किसी भी स्वतंत्रता दिवस या
गणतंत्र दिवस के आयोजन स्थल पर भी नहीं गया और ना ही तब से झंडा को फहरते
देखा।
आजादी के नाम पर सिर्फ सत्ता का हस्तांतरण हुआ,व्यवस्था परिवर्तन नहीं हुआ।जो व्यक्ति ध्वजारोहण करता है,उसमें अधिकतर चोर है जो सरकारी और राजनीतिक पद पर आसीन है।मैं उसे ध्वजारोहण करते देख ही नहीं सकता।यदि कोई ईमानदार व्यक्ति झंडोत्तोलन करे,फिर भी झंडोत्तोलन कार्यक्रम में शामिल होना गुलामी में बंधे होने के बावजूद मूर्खता के कारण खुश होने के समान है।

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