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बिहार बोर्ड को RTI

VISION FOR ALL
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बिहार बोर्ड को RTI लगाकर सारा विषयों का Answer Sheet का एक प्रतिलिपि भेजने के लिए मैंने कहा है|साथ ही मेरा एक कॉलेज मित्र ने भी चार विषयों का RTI लगाया है|नियम के मुताबिक बोर्ड द्वारा पहले ये बताया जाना चाहिए कि मैंने कुल कितना पेज लिखा और दो रुपयें प्रति पेज के दर से कितना रुपयें देने पड़ेंगे|लेकिन दो-चार बहाना बनाया जाएगा क्योंकि निजी कॉलेजों के परीक्षार्थियों को टॉप कराने के लिए कुछ का नंबर जबरन काटा गया है|बहाना के तौर पर कहा जाएगा कि अभी फाइल में कॉपी को नहीं रखा गया है,पहले वाली पत्र पहुँची ही नहीं,पोस्टल आर्डर जमा किया ही नहीं गया आदि|इसलिए मुझे कॉपी मिलते मिलते पाँच-छः महीने गुजर जाएँगें|लेकिन अंततः कम से कम ये साबित जरुर हो जाएगा कि नंबर जबरन काटा गया|मैंने बोर्ड के पास सीधे चैलेंज करने के बजाय आरटीआई को चुना क्योंकि चैलेंज करने पर नहीं सुना जाएगा लेकिन RTI से मुझे पूरा सबूत मिल जाएगा|

मैं आपको एक कानूनी सलाह देना चाहता हूँ |आजकल यौन अपराध में झूठा फंसाना फैशन हो गया है|यदि आपको झूठा फंसा दिया जाता है तो आप CrPC का धारा 164 A का जिक्र करते हुए मेडिकल टेस्ट की मांग करें|साथ ही ये कहिए कि सुप्रीम कोर्ट का ऐसा दिशार्निदेश है और 2005 से भारतीय सबूत कानून के तहत मेडिकल टेस्ट को यौन अपराध के केस में अपरिहार्य सबूत माना गया है|CrPC के तहत ही आपराधिक प्रक्रिया चलती है|यदि आपको बच्चा के साथ झूठा फंसाया गया है तो साथ में आप बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम,2012 और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशार्निदेश का जिक्र कीजिए|बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम की धारा 27 में भी मेडिकल टेस्ट का प्रावधान है चाहे FIR हो या न हो|साथ ही धारा 24(3) में कैमरे के समक्ष बच्चा से पूछताछ ,धारा 37(1) में कैमरे के समक्ष कोर्ट की कार्यवाही और धारा 33(2) के तहत child friendly environment में बच्चा से पूछताछ का प्रावधान है|यदि इतने सारे प्रावधानों का पालन किया जाए तो यदि बच्चा पर कोई दवाब डालकर झूठ बोलवा रहा हो तो सच्चाई सामने आ जाएगा|राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशार्निदेश में भी यही प्रावधान है|

कुछ दिन पहले एक मित्र ने कहा,”आजतक आपको कुछ भी सही लगा है?”पहले लगता था लेकिन अब नहीं लगता क्योंकि अब मैं सबों की सच्चाई से अवगत हूँ|मैंने इस देश के या कहे तो दुनिया के एक एक वर्ग को नजदीक से देखा|ऐसा कोई भी वर्ग नहीं बचा जिससे मेरा संपर्क न हो|साहित्यिक वर्ग,प्रशासनिक वर्ग,औद्योगिक वर्ग,न्यायिक वर्ग ,मीडिया,सब को देखा|गरीबों में भी उनके अधिकारों को लेकर चेतना नहीं दिखती|मित्र और परिवार वाले भी संवेदनहीन हो गए|मानवाधिकार आयोग जैसी अंतराष्ट्रीय विशवसनीयता प्राप्त संस्था भी बगैर न्यायिक प्रक्रिया का पालन किए हुए अपराधियों के पक्ष में फैसला देकर अपराधियों का मनोबल बढ़ाने का काम किया|मुझे परेशान कर दिया गया|ऐसी अवस्था में सिर्फ तीन उपाय दिखता है|
1.मर जाना चाहिए जो कि प्रकृति के साथ धोखाधड़ी है|
2.लोगों के बीच रहते हुए भी लोगों से दूर रहना चाहिए|अपनी Creaturevity को पहचानना चाहिए और लोगों से अलगाव का एहसास नहीं होना चाहिए|
3.लोगों से परे कहीं दूर रहना चाहिए|आज लोगों से परे शायद ही कोई जगह हो जहाँ रहना संभव हो|
इसलिए फिलहाल दूसरा विकल्प अच्छा है|

मैं म्यांमार में मुस्लिमों पर बौध्द धर्म के लोगों द्वारा किए जा रहे अत्याचार के लिए आंग सांग सू की को कठघरे में खड़ा करता हूँ|आखिर सू की अपने धर्म के लोगों को अत्याचार रोकने के लिए क्यों नहीं बोलती?क्या सू की भी सांप्रदायिक हो गई है और बहुसंख्यक बौध्द का समर्थन लेकर राजनीतिक हित को पूरा करना चाहती है?जिस सू की का आजादी का सिध्दांत बौध्द दर्शन पर आधारित हो,वह हिंसा को देख किस आजादी को पा सकती है|बौध्दों के द्वारा मुस्लिमों का दमन वहाँ के सैन्य शासन की साजिश है जो मुस्लिम और बौध्द के बीच में फूट डालकर शासन में बने रहना चाहती है|सू की को ये बात समझना चाहिए|जब तक दोनों धर्मों के लोगों के बीच एकता नहीं होगी,तब तक आजादी नहीं मिलेगा|

मैंने दो प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया|
1.मैं शापिंग मॉल के खिलाफ एक ऐसा बाजारतंत्र को विकसित करना चाह रहा था जहाँ आम दुकानदारों के हितों की रक्षा हो और पूँजीपतियों के प्रभुत्व का सामना किया जा सके|मैंने एक मॉडल विकसित किया है जो मॉल की तरह ही दिखेगी लेकिन मॉल के खिलाफ खड़े होने में सक्षम होगी|निजीकरण,उदारीकरण,साम्यवाद,सरकारी भागीदारी,सहकारिता आदि सभी का मिश्रित रुप इस मॉडल में दिखेगा|एक नया उद्योग तंत्र को विकसित करने के लिए मैं पहले ही इन सभी का मिश्रित रुप का प्रयोग कर चुका हूँ| इस आलेख को पोस्ट करुँगा|
2.मैं कुंदन कुमार,तत्कालिन जिलाधिकारी समस्तीपुर को लेकर संशय में था कि ये भी प्रिंसिपल को बचाने में शामिल हैं या फिर इनके अधीन काम करने वाले अधिकारी केवल शामिल हैं|लेकिन मुझे आज इस बात का पूरा सबूत मिल गया है कि पहले ये शामिल नहीं थें,इनका अधीनस्थ अधिकारी था लेकिन बाद में प्रिंसिपल के साथ साथ अपने अधीनस्थ अधिकारी को बचाने के लिए ये भी शामिल हो गए और उनके द्वारा की गई फरजीवाड़ा को छिपाने के लिए मेरा सवाल का सवाल से हटके कुछ और ही जवाब दिया|

उतराखंड में आई भीषण बाढ़ और उसमें एक मित्र के7 रिश्तेदारों की मौत ने मुझे पूँजीपतियों,माफियाओं और सरकारों की दमनकारी रवैये पर सोचने के लिए विवश कर दिया है|आखिर प्रकृति के साथ सबसे ज्यादा खिलवाड़ किसने किया है?आम लोगों ने भी किया है लेकिन उतना नहीं जितना पूँजीपतियों,सरकारों और माफियाओं ने किया है|सरकार ने अवैद्य तरीके से पूँजीपतियों को जंगलों की कटाई और खनिजों,चट्टानों के दोहन का अनुमति दे दिया है|रेत माफिया,वन माफिया और चट्टान माफिया जैसे माफिया भी सरकार के मिलीभगत से इन संसाधनों को लूटने में लगे हैं|इस लूट का आखिरी परिणाम तो बाढ़,भूस्खलन जैसा आपदा ही है|यदि इतने मारे गए तो इसके लिए ये सरकार,पूँजीपति और माफिया दोषी है|इन पर गैर-इरादतन हत्या का केस चलना चाहिए और इसके लिए The Protection Of Enviroment Act में संशोधन होना चाहिए|

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