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राजनीतिक शक्ति बनाम सामाजिक-जनतांत्रिक शक्ति

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Rahul Kumar
August 17 at 9:08am ·
राजनीतिक शक्ति बनाम सामाजिक-जनतांत्रिक शक्ति

मेरा एक करीबी मित्र ने अपने गाँव के मामले में दो आरटीआई दायर किया और कुछ अन्य काम किए और अब वह स्थानीय चुनाव लड़ना चाहते हैं।मेरा एक अन्य बहुत करीबी मित्र ने अपने कॉलेज के मामले में दो आरटीआई दायर किया और कुछ अन्य काम किए और अब वह कॉलेज का चुनाव लड़ने वाले हैं।
सवाल है,क्या हम सामाजिक रुप से राजनेता से ज्यादा शक्तिशाली नहीं हो सकते?हम सामाजिक रुप से भी राजनेता से ज्यादा शक्तिशाली हो सकते हैं।हम सामाजिक प्रभाव से भी राजनीति को बदल सकते हैं।राजनीति को बदलने के लिए राजनीतिक प्रभाव को स्वीकार करना सामाजिक व जनता की शक्ति के अभाव के कारण पैदा होने वाला भ्रम है।अरविंद केजरीवाल की तरह जो भी व्यक्ति राजनीति को बदलने के लिए राजनीति में प्रवेश करना उचित समझते हैं,वे राजनीतिक शक्ति को शीर्ष और सामाजिक और जनता की शक्ति को शून्य मानते हैं।सामाजिक और जनता की शक्ति ही शीर्ष होना चाहिए।इस शक्ति को शून्य से शीर्ष बनाने का कोशिश करना चाहिए।जिस व्यक्ति में समाज व जनता की इस शक्ति को शीर्ष बनाने का हिम्मत नहीं है,वह कायर है और अपनी कायरता को छिपाने के लिए राजनीति में प्रवेश करता है।
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You, Ravi Singh, Avinash Verma, Abhishek Kumar and 27 others like this.
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Braj Bhushan Dubey काफी तर्कपूर्ण पोस्‍ट है,,,
Unlike · Reply · 2 · August 17 at 9:11am

Arbaz Alam ये राजनीति का एक ही मकसद होता है , वो सिर्फ अपना पाकेट भरना देश को वरबाद करना जनता को वेकुफ बनाना
Unlike · Reply · 1 · August 17 at 10:07am

Arbaz Alam जरूर केजरिवाल की तरह है , यही पर आपका तर्क का उपयोग होना उचित होगा की केजरिवाल की तरह बने तरदेश की सच्ची सेवा करे।
Unlike · Reply · 1 · August 17 at 10:11am

Rahul Kumar #दूबेजी-सामाजिक कार्य करके राजनीति में जाने वाले व्यक्ति से ये पूछा ही जाना चाहिए कि आप जनता की शक्ति को सामाजिक प्रभाव से मजबूत क्यों नहीं बना सकते।
Like · Reply · 2 · August 17 at 11:11am

Mohd Hazique Khan Agree
Unlike · Reply · 1 · August 17 at 12:26pm

Sateyandra Gope राहुल कुमार जी आप का तर्क सही है पर एक बात यह भी सत्य है की अगर किसी खाद्य पदार्थ का श्वाद (टेस्ट) जानना हो तो उसे चखना या खाना होगा. तभी आप श्वाद (टेस्ट) जान पाएंगे. जिस तरह से कोई इंस्टूमेंट ख़राब हो जाता है तो बिना खोले ठीक नहीं होता उसी तरह राजनीती में फैले भ्रस्टाचार को खतम करने के लिए राजनीती में घुसना जरुरी है.और हमें आशा ही नहीं पूरा बिश्वाश है की जिस दिन राजनीती में भ्रस्टाचार ख़तम हो जायेगा हमार देश विश्व में सबसे नंबर-1 देश होगा. इसलिए मै ये कहना चाहूंगा की अरविंद केजरीवाल की तरह जो भी व्यक्ति राजनीति को बदलने के लिए राजनीति में प्रवेश करता है वह उचित समझते हैं,
Unlike · Reply · 1 · August 17 at 12:26pm

Arshad Sulahri Good Write up
Unlike · Reply · 1 · August 17 at 2:26pm

Rahul Kumar #सत्येन्द्रजी-खाद्य पदार्थ और औजार अलग चीज है और राजनीति अलग चीज,दोनों की तुलना ना करे।आप ऐसा इसलिए बोल रहे हैं क्योंकि आपको राजनीतिक शक्ति के आगे सामाजिक-जनतांत्रिक शक्ति तुच्छ दिख रही है।जब आप सामाजिक-जनतांत्रिक शक्ति को मजबूत बनाने से होने वाले फायदे का महसूस करने लगेंगे तो ये बात भूल जाएंगे जो आपने बोला है। #ARSHADSULAHRIG-Thanks a lot sir. #HAZIQUEKHANG-Thanks a lot.
Like · Reply · August 18 at 8:30am

Sateyandra Gope राहुल जी आप की बात से मैं पूरी तरह से सहमत हु. मैंने तो सिर्फ एक उदहारण दिया है. पर राजनीतिक और सामाजिक-जनतांत्रिक ये दोनों शक्ति अलग-अलग है आज के दौर में .राजनीतिक भ्रस्टाचार शक्ति का चक्रव्यूह इतना ताकतवर हो गया है की इसको तोड़ने के लिए इसके अन्दर घुसना ही पडेगा. धन्यबाद.
Unlike · Reply · 1 · August 18 at 10:58am

Rahul Kumar यही तो हमारी भ्रम है।जब राजनीति में घुसकर काम करना ही पड़ेगा तो फिर लोकतंत्र का क्या मतलब हुआ?मतलब हम राजनीति के द्वारा ही सुधार ला सकते हैं।फिर इस सुधार की प्रक्रिया में आम लोगों की सीधे जनभागीदारी कहाँ गई।जनभागीदारी का मतलब ये नहीं हुआ कि कुछ अच्छे छवि वाले राजनेता को सुधार का ठेका दे दिया जाए या फिर कुछ अच्छे छवि वाले सामाजिक कार्यकर्ता को ही सुधार का ठेका दे दिया जाए।जनभागीदारी का अर्थ बहुत व्यापक होना चाहिए और जनसंख्या की बहुसंख्यक हिस्सा का सक्रिय भागीदारी से होना चाहिए।
Like · Reply · August 18 at 1:27pm
Rahul Kumar

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Rahul Kumar It is right that people are not so serious about their empowerment.But such tendency of people should not be made an excuse to enter in politics.Instead of entering in politics,we should fight to remove such tendency of people.Now question of priority comes.Removing such tendency of people is more important than removing bad politics because such tendency of people is the root of bad politics.If we agree with the logic that politics can be cleaned only after entering in politics,then it should also be accepted that such tendency of people can be removed only after entering in process of reformation of people or our reformation.So,now it can be said that social and people empowerment should be given more priority than political empowerment.
Like · Reply · August 18 at 7:27pm

Rahul Kumar यही तो हमारी भ्रम है।जब राजनीति में घुसकर काम करना ही पड़ेगा तो फिर लोकतंत्र का क्या मतलब हुआ?मतलब हम राजनीति के द्वारा ही सुधार ला सकते हैं।फिर इस सुधार की प्रक्रिया में आम लोगों की सीधे जनभागीदारी कहाँ गई।जनभागीदारी का मतलब ये नहीं हुआ कि कुछ अच्छे छवि वाले राजनेता को सुधार का ठेका दे दिया जाए या फिर कुछ अच्छे छवि वाले सामाजिक कार्यकर्ता को ही सुधार का ठेका दे दिया जाए।जनभागीदारी का अर्थ बहुत व्यापक होना चाहिए और जनसंख्या की बहुसंख्यक हिस्सा का सक्रिय भागीदारी से होना चाहिए।
Like · Reply · August 18 at 7:33pm
Rahul Kumar

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