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रोसड़ा पुलिस की मनमानी

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रोसड़ा पुलिस की मनमानी

अभी आदर्श आचार संहिता लागू है और पुलिस ने आचार संहिता की आड़ में निर्दोष को भी फंसाना और पकड़ना शुरु कर दिया है।दिनांक 14 मार्च 2014 को रात करीब 9-9.30 बजे पुलिस ने मेरा दीदी का पति मनीष कुमार और उसका छोटा भाई राजकुमार को अवैध रुप से शराब बेचने के कथित आरोप में गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन छोड़ा जबकि शराब का अवैध कारोबार करने का आरोप इन दोनोँ से एक बड़ा भाई लाला पर लगा है।पुलिस ने रेड किया और लाला की किराना दुकान से शराब की 5-7 बोतले बरामद किया।लाला को पकड़ पाने में पुलिस असमर्थ रही और लाला को नहीँ पकड़ पाने के कारण पुलिस ने राजकुमार को पकड़ लिया और मनीष द्वारा उसकी गिरफ्तारी का विरोध करने पर कि पुलिस ने लाला के बजाय राजकुमार को क्योँ पकड़ा,मनीष को भी पकड़ लिया।पुलिस ने मनीष और राजकुमार को पकड़ने के पीछे तर्क दिया कि सभी भाई एक साथ रहता है ,इसलिए सभी दोषी है।भले ही परिवार के सभी लोग कहने के लिए संयुक्त हैँ क्योँकि सभी एक साथ खाना बनाते हैँ लेकिन सभी अपना अपना रोजगार कर रहे हैं और सभी आर्थिक रुप से अपने अपने रोजगार पर निर्भर हैँ।उस किराना दुकान का लाइसेंस भी लाला के नाम से है।इसलिए उस दुकान से जख्त शराब के कारण दूसरे भाई को गिरफ्तार करना असंवैधानिक था।
बिना साक्ष्य का इन दोनोँ की गिरफ्तारी हुई और ऐसा करके अनुच्छेद 22 का हनन किया गया है जो अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ मौलिक अधिकार प्रदान करती है।मनीष तौलिया और गंजी पहने हुए थे और इसी अवस्था में पुलिस गिरफ्तार करके लेकर चली गई।बगैर सबूत का गिरफ्तारी और तौलिया और गंजी पहने हुए अवस्था में गिरफ्तारी करके अनुच्छेद 21 के तहत मानवीय गरिमा के साथ जीने का मौलिक अधिकार का भी हनन किया गया है।पुलिस का कहना था कि ये दो भाई लाला का सरेंडर करवा दे,इन दोनोँ को छोड़ दिया जाएगा लेकिन लाला सरेंडर करने के लिए तैयार नहीँ था।आखिर ये दो थाना में रहकर लाला का सरेंडर कैसे करवा सकते थे?पुलिस का ये जिम्मेदारी है कि वह लाला पर FIR करे,फिर उसपर गिरफ्तारी वारंट जारी करे और गिरफ्तारी नहीं होने पर कुर्की-जब्ती करे।पुलिस ने सभी भाई को फंसाने के लिए शराब बरामदगी का स्थल दुकान के बजाय घर बताया।

पुलिस की इस साजिश को आसानी से पकड़ा जा सकता है-
(i) शिकायतकर्ता, जो कि आरोपी का पड़ोसी है,ने समस्तीपुर SP को शिकायत कर लाला पर आरोप लगाया कि वह अपने किराना दुकान के जरिये शराब भी बेचता है।SP ने लाला को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।फिर शिकायतकर्ता के आरोप के विरुध्द और SP के आदेश के विरुध्द मनीष और राजकुमार को पुलिस ने कैसे पकड़ लिया?पुलिस रेड करके लाला को गिरफ्तार करने आयी थी,फिर मनीष और राजकुमार को कैसे पकड़ लिया?जाहिर है कि पुलिस ने सभी भाई का साथ होने का महज एक बहाना बनाया।

(ii) पिछले वर्ष भी मई में रेड हुआ था और पुलिस ने लाला का नहीं मिलने पर किराना का सामान दे रहे दुकान का एक वृध्द कर्मचारी को पकड़ लिया और उसे 5 महीना जेल मेँ रहना पड़ा।पिछले बार भी पुलिस ने मनमानी किया था।मनीष पिछले वर्ष उस समय दुर्गापुर में थे और उनका BBA की पढ़ाई पूरा होने वाला था।जाहिर है कि पिछले वर्ष भी शराब की बिक्री हो रही थी,जब मनीष दुर्गापुर में BBA कर रहे थे।मतलब ये कारोबार पहले से हो रहा है और इस कारोबार को कोई ऐसा व्यक्ति ही कर रहा है जो वहाँ पहले से मौजूद था।मनीष वहाँ पहले से मौजूद नहीँ थे,इसलिए मनीष इस कारोबार में शामिल नहीँ हो सकते।

(iii) पुलिस ने सभी भाई को फंसाने के लिए शराब का बरामदगी स्थल दुकान के बजाय घर दिखाया लेकिन मात्र 5-7 बोतले बरामद हुई ।होली का समय था और कोई भी व्यक्ति खुद पीने के लिए या अपने दोस्त,रिश्तेदारोँ को पिलाने के लिए भी 5-7 बोतले रख सकता है।The Bihar And Orissa Excise Act,1915 की धारा 48 मेँ यह स्पष्ट है कि यदि शराब पाये जाने का आधार संतोषजनक हो तो फिर अवैध शराब बेचने का आरोप नहीँ लगाया जा सकता।

(iv)पुलिस ने राजकुमार को सवेरे लगभग 10 बजे छोड़ दिया और EXCISE DEPARTMENT के पुलिस को बुलाकर मनीष को EXCISE DEPARTMENT के हवाले कर दिया।वस्तुतः पुलिस को ये दिखाना था कि कार्रवाई हुई है क्योँकि SP का आदेश था।लेकिन SP का आदेश लाला को पकड़ने का था,ना कि मनीष को।राजकुमार के पास चिमनी चलाने का लाइसेँस है,इसलिए उसे अवैध शराब का विक्रेता साबित करना आसान नहीँ था।लेकिन मनीष BBA कर चुके हैँ और क्या कोई व्यक्ति BBA करने के बाद शराब का मामूली -सा और अनैतिक धंधा करेगा?पिछले कुछ महीनोँ से MBA करने के लिए परिवार से आर्थिक सहयोग नहीँ मिलने के कारण मनीष घर पर बैठे हैँ,और खाद-बीज का सीजनल दुकान भी किया था लेकिन इसका मतलब तो ये नहीँ हुआ कि शराब का कारोबार भी करने लगे।

मनीष के घर वाले डरे हुए थे कि मनीष को छुड़ाने के चक्कर मेँ कहीँ सभी भाई को पकड़ कर जेल में डाल न दे या मनीष को छोड़कर लाला को जेल में डाल न दे या ज्यादा बोलने पर कहीँ मनीष को ही जेल में डाल न दे।पहली बात कि कोई भी कार्रवाई लाला के खिलाफ होना चाहिए।लाला को छोड़कर अन्य भाई को पकड़ने या जेल में डालने के लिए कोई साक्ष्य नहीँ है।

सभी को ये डर लग रहा था कि मनीष को यदि जेल भेज दिया जाएगा तो चुनाव तक बेल भी नहीँ होगा क्योकि आदर्श आचार संहिता लागू है।कानून की जानकारी नहीँ होने के कारण भी लोग काफी डर जाते हैँ।मनीष को अवैध तरीके से हिरासत में लिया गया था और अवैध तरीके से हिरासत मेँ लेने पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट मेँ सीधे मुकदमा दायर की जा सकती है।अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट और अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट मेँ HABEAS CORPUS नामक रिट दायर किया जा सकता है।इस रिट को दायर करने के बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को आपातकालीन सुनवाई करनी पड़ती है और हिरासत मेँ लिए गए व्यक्ति को कोर्ट में हाजिर करना पड़ता है और हिरासत गैर-कानूनी पाए जाने पर तुरंत छोड़ना पड़ता है।बेल के चक्कर मेँ पड़ने के बजाय HABEAS CORPUS दायर किया जाना चाहिए।

लाला को भी गिरफ्तार होने से बचाना था या लाला के जगह पर मनीष को जेल जाने से बचाना था या सभी भाई को फंसने से बचाना था,इसलिए मनीष के नाम पर जुर्माना लगाकर और बांड बनाकर मामला को मैनेज कर लिया गया लेकिन मनीष के नाम से बांड बनाया गया है,इसलिए भविष्य में पुलिस फिर जबरन मनीष को ही पकड़ेगी।रोसड़ा पुलिस ने मनीष को छोड़ने के लिए 4000 रुपये और EXCISE DEPARTMENT ने 31,000 रुपये घूस लिए।

मैँ और मेरा पापा 15 मार्च को रोसड़ा थाना गए थे।हमलोग ने पूछताछ किया कि किस आधार पर मनीष को गिरफ्तार किया गया और जुर्माना किसके नाम से लग रहा है।पुलिस को शक हो गया कि हमलोग पुलिस के विरुध्द केस करेंगे,इसलिए पुलिस मनीष के भाई को धमकाने लगा कि उसदोनोँ को जहाँ से आया है,वहाँ भेज दो,अन्यथा तुम सभी भाई को जेल भेज देँगे।मनीष के घर वाले मामला को कैसे भी करके मैनेज करना चाहते थे और हमदोनोँ को कुछ बोलने नहीँ दे रहे थे।अन्यथा,पुलिस को मनमानी करने नहीँ दिया जाता।घटना जाखर ग्राम की है।

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