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मौत के तांडव से उपजे सवाल

AMIR KHURSHEED MALIK
AMIR KHURSHEED MALIK
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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में नसबंदी शिविर में चले मौत के तांडव ने अनगिनत सवाल खड़े कर दिए है। सरकार द्वारा लगाए गए विशेष शिविर में एक डॉक्टर ने मात्र 6 घंटे में 83 महिलाओं की नसबंदी कर डाली, जबकि नियम के मुताबिक एक दिन में एक डॉक्टर केवल 35 नसबंदी ही कर सकता है। ऑपरेशन की स्थितियों के बारे में अधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक इसमें जंग लगे औजार इस्तेमाल किए गए थे। शिविर में इस्तेमाल किये गई दवाइयां मानक के अनुरूप नहीं थी , जो शायद इस घटना की सबसे बड़ी वजह बन गई। बताया जा रहा है कि इन दवाइयों में पेस्टीसाइड की मात्रा खतरनाक स्तर तक पाई गई । यह भयानक घटना ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्वास्थ्य सेवा की पोल खोलती है। आखिर इन दवाओं को चुनने की निर्धारित प्रक्रिया को चंद सिक्कों के लिए दरकिनार किये जाने से दर्ज़नों परिवारों को उम्र भर के लिए न भूलने लायक दर्द दे दिया गया ।
लेकिन इससे एक और बड़ा सवाल उभर कर आया है, जिससे मुंह फेरने की कोशिश की जा रही है । शिविरों में की जाने वाली सामूहिक नसबंदी के लिए ट्यूबेक्टमी का चुनाव बिल्कुल गलत है। इसमें औरतों की मौत की घटनाएं पहले भी घट चुकी हैं,लेकिन हमने और हमारी सरकारों ने इसको आज भी जारी रखा है ।सिर्फ लक्ष्य हासिल करने की चाह से किये जाने वाले इस सरकारी कार्यक्रम से सामाजिक सरोकारों को कितना नुकसान पहुँच सकता है। इसकी फ़िक्र किसी स्तर पर दिखाई नहीं पड़ती। आंकड़े बताते हैं कि देश भर में होने वाले नसबंदी के मामलों में 95% महिलाओं की संख्या होती है ।जोकि इस मामले में भी पुरुष प्रधान समाज के वर्चस्व को ही दर्शाता है । जबकि पुरुषों के लिए अपनाई जाने वाली विधि , महिलाओं के लिए अपनाई जाने वाली विधि ट्यूबेक्टमी के मुकाबले काफी आसान और काफी कम जोखिम वाली होती है । लेकिन आम तौर पर शिविरों में महिलाओं को ही जनसँख्या नियंत्रण के अभियान में बलि का बकरा बनाया जाता है ।अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकारी तंत्र भी सब कुछ जानते हुए भी आँखें मूँद लेता है ।
जनसंख्या नियंत्रण जरूरी है, लेकिन इसके लिए बेहतर स्वास्थ्य ढांचा विकसित करना होगा और लोगों में जागरूकता बढ़ानी होगी। साथ ही जो प्रदूषित दवाओं का खेल पूरे देश में धड़ल्ले से चल रहा है , उस पर भी लगाम लगाना जरुरी है। वरना इस तरह के हादसों को रोक पाना हमारे बस में नहीं होगा । इसके लिए राज्य सरकारों के साथ साथ केंद्र सरकार को भी जरुरी दिशा निर्देश जारी करके कड़ी कार्यवाही को अंजाम देना होगा । गौरतलब है कि ग्रामीण इलाकों में इस तरह की दवाओं से मौतों के छुट-पुट मामले होते ही रहते हैं , जिनकी संख्या इस तरह के शिविरों में ही बढ़ी नज़र आती है । लेकिन घटनाएँ तो बदस्तूर जारी हैं । बस देरी हमारे , और हमारी सरकारों के जागने की है ।

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