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बयानों की राजनीति

AMIR KHURSHEED MALIK
AMIR KHURSHEED MALIK
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मुस्लिम समुदाय से वोट देने का अधिकार छीन लेने के शिवसेना नेता संजय राउत के बयान से उपजी सरगर्मियां ख़त्म होती नज़र नहीं आ रही । इस मुद्दे पर दोनों पक्षों की बयानबाजियाँ और राजनीतिक दलों की खींचतान के साथ ही माहौल में गर्माहट पैदा हो गई । शायद बयान देने वालों का मकसद भी यही हालात पैदा करना था । इसी मकसद से यह बेतुका बयान आया था । हालांकि मुस्लिम समुदाय से वोट देने का अधिकार छीन लेने के शिवसेना नेता संजय राउत के बयान से सरकार और भाजपा ने किनारा कर लिया है । परन्तु इस बयान की निंदा करने का साहस भी सरकार नहीं दिखा सकी है। ऐसे में अल्पसंख्यक समुदाय में बयान के विरोध में स्वर उपजना स्वाभाविक है । मुस्लिम धर्मगुरुओं ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि केंद्र में सत्तारुढ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दल शिवसेना के इस बयान पर नरेन्द्र मोदी सरकार को अपना रख साफ करना चाहिये। ऐसे माहौल में एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी कहाँ चुप रह सकते थे । ओवैसी ने भी मौके का फायदा उठाते हुए चौके लगाने की कोशिश शुरू कर दी ।

हमारे देश में मतदान का अधिकार संविधान के दायरे में आता है । परन्तु किसी भी महानुभाव ने संवैधानिक दायरे में इस बातचीत को परखने का दुस्साहस नहीं । भारत दुनिया का सबसे बडा लोकतंत्र है, जिसके बुनियादी उसूलों में धर्मनिरपेक्षता अपना अहम स्थान रखती है ।यह सही है कि राजनीतिक पार्टियां अब तक मुसलमानों को वोट बैंक की तरह सिर्फ इस्तेमाल करती रही हैं । साथ ही साथ यह सच्चाई भी किसी से छुपी नहीं है कि मुसलमानों को सिर्फ वायदे मिले हैं । विकास की तरफ उनके क़दमों को बढाने के लिए कोई भी सरकारी योजना और कार्यक्रम व्यावहारिक धरातल पर फिसड्डी ही साबित हुए है । अनगिनत कार्यक्रम सिर्फ घोषणाओं में ही नज़र आये । यकीनन यह हालात बदलने चाहिए । लेकिन मुस्लिमों से मताधिकार छीन लेना, इस समस्या का हल कतई नहीं है। देश के संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को संविधान के दायरे में ही हल ढूंढना चाहिए । असंवैधानिक भाषा और असंसदीय आचरण से देश जुड़ता नहीं , बिखरता है । लोगों में उन्माद भरने से मसले सुलझते नहीं , उलझते हैं ।

अब समय आ गया है कि देश के प्रधानमन्त्री को भी देश वासियों के बीच इस नफ़रत के बीज बोने वाले लोगो पर सख्त रवैय्ये के संकेत देने होंगे । विदेशों में आदर्श स्थितियों की परिकल्पना प्रस्तुत करने के साथ साथ देश में भी वैसी ही जमीन सच में तैयार भी करनी होगी । वरना सरकार के मुखिया होने के नाते प्रधानमन्त्री अपने ही सहयोगियों की इस बयान बाजियों के दाग से छुटकारा नहीं पा पाएंगे । दूसरी तरफ ओवैसी जैसे नेताओं को भी अपनी भाषा में वही संयम लाना होगा जिसकी अपेक्षा वह दूसरों से कर रहे हैं ।

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