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सूफी अम्बा प्रसाद

AMIR KHURSHEED MALIK
AMIR KHURSHEED MALIK
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रूहेलखंड की धरती ने आजादी के अनगिनत सपूतों को जन्म दिया । इनमे एक महत्वपूर्ण नाम सूफी अम्बा प्रसाद का भी है। अपने समय के प्रकाण्ड विद्वान, और देश प्रेम के अदभुत ज़ज्बे के कारण अंग्रेज़ सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बने अम्बा प्रसाद का कर्म क्षेत्र रूहेलखंड,पंजाब,नेपाल से लेकर बलूचिस्तान, अफ़गानिस्तान और ईरान तक फैला था । अंग्रेजों से अपनी लेखनी से लोहा लेने की बात हो ,या फिर उनके गढ़ में घुस कर जासूसी करने का जोखिम भरा काम हो , अम्बा प्रसाद को महारत हासिल थी। परन्तु आज की पीढ़ी इस विलक्षण प्रतिभा के योगदान से अनभिज्ञ है।
सूफी अम्बा प्रसाद भटनागर का जन्म 21 जनवरी 1858 को मुरादाबाद में हुआ था ।उन्होंने अपनी शिक्षा मुरादाबाद,जालंधर और बरेली में ग्रहण की। उन्होंने एम ए करने के बाद वकालत की डिग्री प्राप्त की।उनके जन्म से एक हाथ नही था ।जिसके बारे में उनका मानना था कि अंग्रेजो से 1857 में स्वतंत्रता के लिए हुई जंग में शहीद होने से पहले ही उनका ये हाथ कट गया था , पुनर्जन्म मिला , परन्तु उनका वह हाथ वापस नहीं मिला। पारसी भाषा के विद्वान अम्बा प्रसाद ने मुरादाबाद से उर्दू साप्ताहिक जाम्युल इलुक का प्रकाशन किया। इसका प्रत्येक शब्द अंग्रेज़ शासन पर प्रहार करता था। हास्य रस के महारथी अम्बा प्रसाद ने देशभक्ति से सम्बंधित अनेक विषयों पर गंभीर चिंतन भी किया।अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ इस जंग में वो हिन्दू मुस्लिम एकता के जबरदस्त हिमायती रहे ।उन्होंने अंग्रेजो की हिन्दू मुसलमानों को लड़वाने के लिए रची गई कई साजिशें अपने अखबार के जरिये बेनकाब की । कई बार जेल में असहनीय कष्ट भरे दिन (1897-1906) उन्हें गुज़ारने पड़े। उनकी सारी संपत्ति भी सरकार ने ज़ब्त कर ली ।लेकिन उन्होंने सर नहीं झुकाया। जेल से छूटने पर निजाम हैदराबाद ने उन्हें सारी सुविधाओ के साथ बसने का निमंत्रण दिया ।परन्तु उनको पता था की उनका जन्म एक बड़े मकसद के लिए हुआ है । अम्बा प्रसाद पंजाब चले गए और हिन्दुस्तान अखबार में काम करने लगे।सरदार अजीत सिंह की भारत माता सोसाइटी से जुड़ कर उन्होंने अपना काम जारी रक्खा। यहाँ पर भी अंग्रेजों की बढती घेराबंदी के कारण उन्हें अजीत सिंह के साथ नेपाल में शरण लेनी पड़ी। परन्तु उनको शरण देने के जुर्म में वहां के गवर्नर को भी पद से हटा दिया गया ,और एक बार फिर सूफी अम्बा प्रसाद को गिरफ्तार करके लाहौर लाया गया। लाला पिण्डी दास के अखबार इंडिया में प्रकाशित उनके लेखों को आपत्तिजनक मानते हुए अभियोग बना कर लगाये गए,पर सिद्ध ना हो सके। उनके द्वारा लिखी पुस्तक जब्त कर ली गई। 1909 में उन्होंने पंजाब से पेशवा अखबार का प्रकाशन शुरू किया। अब अंग्रेज़ सरकार को चिंता हुई कि यह अखबार कही पंजाब में भी बंगाल और रूहेलखंड जैसे हालात ना पैदा कर दे ।दिन-ब-दिन तेज़ होती धरपकड़ से तंग आकर अम्बा प्रसाद ने अपना नाम बदल कर सूफी मोहम्मद हुसैन रख लिया। आखिर कार उनको अपने साथियों के साथ देश छोड़ कर ईरान में शरण लेने के लिए विवश होना ही पड़ा ।लेकिन वहां भी उनका अंग्रेजो के विरुद्ध मुहिम जारी रहा। ईरान के शीराज़ में उन्होंने ग़दर पार्टी के साथ काम किया।ईरान में लिखी गई उनकी पुस्तक आबे हयात काफी चर्चा में रही ।वहां उन्होंने शिक्षा दान का अदभुत कार्य भी किया । उन्होंने मशहूर राजनयिक और शिक्षाविद डॉक्टर असग़र अली हिकमत को पढाया जो आगे चल कर ईरान की राजनीति में ही नहीं विश्व में भी एक सम्मानीय नाम बना।
अंततः अंग्रेजो ने उन्हें गिरफ्तार कर ही लिया। उनको गोली मारने का आदेश हुआ। परन्तु इससे पहले ही 21फरवरी1915 में उनका देहावसान हो गया ।शीराज़ में उनका मकबरा स्थित है। आज भी ईरान में उनका नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है ,पर अफ़सोस ……….. हम अपनी क्रांति के इस महत्वपूर्ण स्तम्भ के बारे में जानते भी नही !10385587_362664567229019_4273087905468268665_n

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