झड़ी बूंदों की
आज भी सताया करती हैं मुझे
तन्हाई में वोह प्यारी बातें तेरी
“भीगा ना करो बारिश में
जान
पानी मीठा हो जाएगा “
उसी शर्म की लाली से
अब भी सुर्ख है
दामन मेरा…..
मगर एक सवाल
में उलझी हूँ आज कल
की अगर मैं
चाशनी सरापा थी,
तो ये बोछार जो मेरी
आँखों में पिन्घलती है
इसकी बूंदों में
नमक के दाने क्यूँ हैं…. ????????
—आंच—-
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