zindggi
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कभी मोती
सा खुद ही में
पूरा….
हर रात जहाँ की हर
शय अर्श पर
यूँ ही बादलो
से बनती
बिगड़ती रहती है….
मगर कुछ भी
मुकम्मल नहीं लगता
उससे चाँद जुड़ने से
पहले तक….
मैं उन्ही बादलो
का टुकडा हूँ…
हर रूप में
ढलने की कोशिश में
बिन तुम्हारे
अधूरी ही रह जाती हूँ….
और तुम
खुद ही में मुकम्मल
मुकम्मल चाँद……
—-आंच—-
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