मैं आंच यात्री गुडगाँव से गडी-हरसरू तक हर रोज़,दो दिन पहले खत्म हुई हड़ताल के प्रभावों से बेखबर की बढ़ गया है किराया ऑटो का,चाहे जाना हो १ कोस दूर या ३ km चुकाने होंगे १० रुपीये .
दिन था good friday का,और नहीं मिली थी पिछली कई बार की तरह हमे कॉलेज की छुट्टी.मौसम चूँकि खुबसूरत था,चमकीले से बादल आसमान में बिखरे पड़े थे,और हवाएं शायद उनेह और फैलाये जा रही थी..छुट गयी थी मौसम की रूमानियत का लुत्फ़ उठाते बस मेरी,
सोचा चलो आज ऑटो के सफ़र का लुत्फ़ ही उठा लिया जाए,मगर जैसे ही उसकी पिछली सीट पर बैठी,ड्राईवर ने टांग दी मेरे कानो में खबर नयी,मैडम १० rs है किराया चाहे उतरो जहाँ भी,किसने दिया यह हक तो जवाब था DC साहब के आर्डर है,बड़ी भारी भरकम पहुँच बतायी थी(सही या झूठी) वोह जाने…..
खाली ऑटो,शानदार रोड के गड्डे,और मेरे कानो पे झुमको की तरह लटकी खबर,झूलती ही जा रही थी….और शायद चमकती औरो को भी दिख रही थी,तभी तो खाली था,और खाली ही रह गया था…..मगर चमक और तेज़ हो गई जब,१० सेक्टर के चौक पर वोह ,जोश से बोला,मैं तो बस यही तक जाऊँगा….
वोह रोड पिछले साल भर से बन रहा है…और हर रोज़ खिचीं रहती है उसपर जाम की लकीर,उस रोज़ थोड़ी और गहरी थी…..रफ़्तार रेंग रही थी…और मैं एक नए ऑटो पे सवार थी….
बस जैसे तैसे गड़ी मोड़ तक फिर एक ऑटो में खुद को फेंकना पड़ा,यह साहब ज़रा मेहरबान था…और यहाँ कुछ फींकी हुई थी चमक किराए की….जो एक एहसान की तरह ५ रुपीये ले कर खुश तो शायद नहीं था…
बस जैसे तैसे पहुँच ही गयी थी……और बोझ मेरे purse का हो चुका था हल्का भी…..पुरे २५ रुपीये निकल चुके थे उस से……
दिमाग में बहुत सवाल थे……
यह मेरा आज का सफ़र था ,लोग कैसे रोज़ शेहर के रास्तो पर सफ़र कर रहे हैं…महंगाई के दौर में बस इसकी और कमी थी,किराए का मन मुताबिक बढ़ जाना….और एक ऊँची पदवी के आदमी का नाम जोड़ कर बहकाना….मन मर्ज़ी अब इतनी बढ़ चुकी है….के कोई ऑटो चालाक अब दूर नहीं जाना चाहता जाए भी क्यूँ जब करीब ही उतने ही पैसे बन जाते हैं….
यह दौर शायद अबके जल्दी खत्म नहीं होगा..और मेरी तरह ही बढ़ते किराए यूँ ही कानो से झूलते नज़र आयेंगे,करते लहूलुहान,और कमज़ोर कर देते आदमी की जेब….
——आंच———-
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