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हिंदी ब्लॉगिंग ‘हिंग्लिश’ स्वरूप को अपना रही है। क्या यह हिंदी के वास्तविक रंग-ढंग को बिगाड़ेगा या इससे हिंदी को व्यापक स्वीकार्यता मिलेगी?“Contest”

antardwand
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आदरणीय पाठक गन..
यह बिलकुल सत्य है की आज के वर्तमान युग में हिंदी ब्लोगिंग हिंगलिश स्वरुप को अपना रही है..मेरा मानना है यह हिंदी के वास्तविक रंग को और भी बिगाड़ेगा.आज की हिंदी, साहित्य या साहित्यकार की ही नहीं रही व पत्रकार की भी है, शिक्षक और छात्रों की तो है ही, राजभाषा विभाग की भी है, रंगमंच की और बंबईया सिनेमा ने तो हिंदी को सारी दुनिया में पहुँचाया हुआ है और बहुत से युवक-युवतियों की हिंदी सीखने में रुचि हिंदी फिल्में देखने के बाद जगती है।हिंदी अपने देश में ही नही विदेशो में बसे भारतीय मूल के लोगों को भी आकर्षित करती है जब वे किसी विदेशी को हिंदी में बोलता देखते है
दरअसल जापान में हिंदी पढ़ाने का कार्यक्रम 100 साल से भी अधिक पुराना है और वहां सन 1908 से हिंदी पढ़ाई जा रही है। आखिर हम भूल कैसे सकते हैं कि जापान के साथ भारत के सम्बन्ध उस समय से चले आ रहे हैं जब छठी शताब्दी में बौद्ध धर्म का वहां आगमन हुआ। यह जरूर है कि सीधे भारत से न आकर यह धर्म चीन और कोरिया के ज़रिये यहां आया। इसीलिए ये लोग तुलसीदास को श्रद्धा से स्मरण करते हैं। तुलसी कृत रामायण यहां के भारतवंशियों के लिए सबसे प्रेरक ग्रंथ है। जन्म-मरण, तीज-त्योहार सब में रामायण की अहम् भूमिका रहती है। फिजी के मूल निवासी भी भारतीय संस्कृति से प्रभावित हैं। भारतीय त्योहारों में फिजी के मूल निवासी भी भारतीयों के साथ मिलकर इनमें भाग लेते हैं। बहुत से मूल निवासी अपनी काईबीती भाषा के साथ-साथ हिंदी भी समझते और बोलते हैं।पिछले एक-दो वर्षों से काफी गैर-भारतीय भी हिंदी में रुचि दिखाने लगे हैं। विदेशों में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए पाठ्यक्रम को स्तरीय व रोचक बनाने की आवश्यकता जताई जा रही है .
बच्चा वही भाषा बोलना सीखता है जो मां उससे बोलती है, इसलियें ही वह मातृभाषा कहलाती है। मां बच्चे से कहती है, ‘’देखो वो क्या है? ‘’डौगी’’ ‘’ये तुम्हारी नोज़ी है’’ ‘’वो ऊपर देखो इत्ता बड़ा राउंड राउंड मून।‘’ इस भाषा मे इंगलिश के चाहें जितने शब्द हों पर वाक्य विन्यास तो हिन्दी मे ही है। बच्चा स्कूल जाने लायक होने लगता है तो उसे और इंगलिश सिखाने की कोशिश की जाती है, क्योंकि थोड़े से भी संपन्न माता पिता इंगलिश माध्यम के स्कूल मे ही भेजना चाहते हैं। कक्षा मे इंगलिश बोलना उनकी मजबूरी होती है परन्तु खेल के मैदान मे उनकी भाषा कुछ इस प्रकार की होती है। ‘’तू कल क्यो नहीं आया था ?’’ ‘’मुझे फीवर था आज वीकनैस लग रही है मम्मी तो एलाउ ही नहीं कर रहीं थी खेलने को।‘’ ‘’कल ज़रूर आ जइयो।‘’
इस वार्तालाप मे ‘फीवर’, ‘वीकनैस’ और ‘एलाउ’ इंगलिश के शब्द हैं, फिर भी ये हिन्दी ही है। ‘आ जइयो’ वाक्याँश दिल्ली क्षेत्र की विशेषता है, खड़ी बोली की नहीं, इसके बावजूद भी ये हिन्दी ही है। हाँ बच्चे पाठ्यपुस्तकों के अलावा बहुत कम किताबें पढ़ते हैं। हिन्दी क्या इंगलिश की भी नहीं पढ़ते, इसलियें शब्दावली का विकास कम हो पाता है। ये विश्व भर मे हो ही रहा है।
हिन्दी भाषी क्षेत्रों मे अनौपचारिक वार्तालाप अधिकतर इंगलिश मिश्रित हिन्दी मे ही होता है। आज भी हम हिन्दी मे सोचते है, मस्तिष्क मे स्वतः उसका अनुवाद होता है, कोशिश नहीं करनी पड़ती। सोचने की भाषा मे बोलने और समझने मे सहजता आती है। मेरा कहने का यह तात्पर्य बिलकुल नहीं है कि ये पढ़े लिखे लोग इंगलिश मे बात नहीं कर सकते, पर आम तौर पर करते नहीं है।
त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
धन्यवाद
आरती शर्मा
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