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‘हिन्दी बाजार की भाषा है, गर्व की नहीं’ या ‘हिंदी गरीबों, अनपढ़ों की भाषा बनकर रह गई है ’– क्या कहना है आपका? “Contest”

antardwand
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downloadहिंदी बाज़ार की भाषा नही गर्व की भाषा है.मानती हूँ कुछ हद तक हिंदी गरीबों और अनपढ़ों की भाषा बनकर रह गई है पर बिलकुल सही नही है.अच्छी और शुद्ध हिंदी भाषा का प्रयोग अच्छे पढ़े-लिखे और सम्मानित लोग भी करते है और गर्व भी महसूस करते है.हिंदी हमारी मातृभाषा के साथ साथ पहली राजभाषा भी है.हिंदी भारत में सबसे अधिक बोली व् समझी जाने वाली भाषा है.भाषा सदैव उच्चारण से आती है.और आम भाषा में हिंदी सवार्धिक प्रचलित है. हर धर्म का व्यक्ति हिंदी में बात करता है चाहे वह हिन्दू है,मुस्लिम है,सिक्ख है या फिर ईसाई.
स्वतन्त्रता के पैसंठ वर्ष बाद हिन्दी की जो स्थिति होनी चाहिये थी, वैसी बिलकुल नहीं हैं, फिर भी हिन्दी की जड़े बहुत मज़बूत हैं। यह पेड़ तो वटवृक्ष है, हम खाद पानी न भी डाले, खर पतवार से घिरा रहने दें, तो भी कुछ कमज़ोर पड़ सकता है, पर गिर नहीं सकता, उसकी जड़े जमी ही रहेंगी। आने वाले कई सौ साल तक हिन्दी के विलुप्त होने का कोई ख़तरा भारत मे नहीं है। जब तुलू, कोंकणी व मैथिली जैसी बोलियाँ जो बहुत छोटे भूभाग मे थोडे से ही लोग बोलते हैं, वो ज़िन्दा हैं, तो हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के विलुप्त होने की बात तो सोचना ही बेमानी है।बच्चा वही भाषा बोलना सीखता है जो मां उससे बोलती है, इसलियें ही वह मातृभाषा कहलाती है।
कुछ लोगों का मानना है कि जो भाषा रोज़गार नहीं दे सकती वह विलुप्त हो जाती है।यदि यह सही है तो अब तक संसकृत और लैटिन का तो लोप हो गया होता, अब भी संसकृत भारत मे प्राथमिक कक्षाओं से लेकर स्नातक, स्नातकोत्तर और पी.एच.डी. के स्तर तक पढ़ी और पढाई जाती है।शिक्षा और अनुवाद के क्षेत्र मे हिन्दी की अपेक्षा संसकृत मे तो रोज़गार के अवसर बहुत ही कम हैं, फिर भी संसकृत जीवित है, उसका साहित्य भी जीवित है, फिर इतने बड़े भूभाग मे, इतनी बड़ी जनसंख्या की बोलचाल की भाषा हिन्दी के लुप्त होने की तो तनिक भी आशंका नहीं की जा सकती।
हमारे देश में हिन्दी पढ़ाने हेतु उच्च-स्तरीय कक्षाओं के लिए अच्छे पाठ विकसित करने की आवश्यकता है। यह पाठ स्थानीय परिवेश में, स्थानीय रुचि वाले होने चाहिए। हिंदी में संसाधनों का अभाव हिन्दी जगत के लिए विचारणीय बात है! अच्छे स्तरीय पाठ तैयार करना, सृजनात्मक/रचनात्मक अध्यापन प्रणालियां विकसित करना, पठन-पाठन की नई पद्धतियां और पढ़ाने के नए वैज्ञानिक तरीके खोजना जैसी बातें हमारे देश में हिन्दी के विकास के लिए एक चुनौती है।
अब समय बदल गया है लोग भारतीय कहलाने पर गर्व महसूस करते है.हमारे देश की पहचान हिन्दू रीती-रिवाजों एवं सभी धर्मो से है..और धर्म जोड़ता है तोड़ता नही..हिंदी अब धीरे धीरे अपनी पहचान की और बढ़ रही है इसमें तनिक भी संशय नही है.
त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
धन्यवाद
आरती शर्मा

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