ख़ामोशी...
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उस शाम मैंने सूरज को देखा
अकेला, उदास…
जैसे उसकी यह आखिरी शाम हो
जैसे वो हमेशा, हमेशा के लिए जा रहा हो
उसी शाम मैंने
एक जनाजा देखा था
जनाजा जिस पर रखी थी मेरी ही लाश
और उसी शाम ठीक मेरे जनाजे के पास
एक बारात एक डोली विदा कर ले जा रही थी
डोली जिसमें दुल्हन बनी तुम थी
उस शाम शायद मैंने अपना भविष्य देखा था
और शायद इसलिए उस शाम मैंने
सूरज को देखा अकेला, उदास…
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