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क्यों आख़िर क्यों….

ख़ामोशी...
ख़ामोशी...
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क्यों आख़िर क्यों
तुझसे इतनी मोहब्बत करता हूँ मैं
खुदा को मानता नही
और फ़िर भी
तुझे खुदा की मन्नत मानता हूँ मैं
इन्तजार से नफरत है मुझे सबसे ज्यादा
और फ़िर भी
हर पल तेरे इन्तजार में जीता हूँ मैं
क्यों आख़िर क्यों
तुझसे इतनी मोहब्बत करता हूँ मैं

तन्हाई से डरता हूँ बहुत
और फ़िर भी
तन्हा ही जीता हूँ मैं
चाहता हूँ तुझे दूर कर दूँ ख्यालों से अपनी
और फ़िर भी
तुझे हर वक्त याद करता हूँ मैं
आँखों से तो अश्क बहना चाहते है बहुत
और फ़िर भी
जोर-जोर से हमेशा हँसता हूँ मैं

क्यों आख़िर क्यों
जानते हुए तू मुझसे प्यार नही करती
और फ़िर भी
तुझसे इतनी…. इतनी मोहब्बत करता हूँ मैं…

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