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जब चाहा था

ख़ामोशी...
ख़ामोशी...
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जब चाहा था मैंने
तुम्हे अपना बनाना
तुम दूर हो गई मुझसे
जब चाहा मैंने
तुम्हे बताऊँ करता हूँ मैं तुमसे प्यार
तुम सामने ही न आई
जब भी चाहा तुमसे बातें करूँ
तुम मुझे दिखाई ही न पड़ी
और जब तुम्हे न देखने की
चाहत पैदा की
तुम मेरी आंखो में बस गई
इतने दिनों बाद
कितने ही पलों को इन्तेजार में
बिताने के बाद
जब चाहा तुम्हे भूला दूँ
तुम वापस मेरी जिंदगी में आ गई
अब जब चाहता हूँ
मैं तुमसे बातें न करूँ
तुम ख़ुद ही मुझसे बातें करने लगी हो
एक बार फिर तुमने
उलझा दिया है मुझे
तुम्हे खोने या पाने के सवाल में…

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