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तस्वीर…..

ख़ामोशी...
ख़ामोशी...
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किसी ने पूछा था कभी मुझसे कि बताऊँ मैं उसकी तस्वीर कैसी है…

पहली बार देखा था उसे मैंने जब
लगा उसने ओढ़ रखा है सारा आकाश बदन पे अपने,
खुले बाल उसके बादलो से लग रहे थे,
और उसकी हंसी किसी अधखिले गुलाब सी,

नदियों में भी चंचलता क्या होगी,
पर्वत का भी वजूद क्या होगा,
उसके चेहरे कि चमक के आगे सच सूरज भी फीका होगा,

चाँद में शीतलता भी कम है,
रात की शांति भी कम है,
और आँखों में गहराई है इतनी,
कि सामने उसके समुन्दर भी कम है….

किसी कविता में भी इतने शब्द न होंगे
किसी तस्वीर में भी इतना रंग न होगा,
जो बांध सके खूबसूरती को उसके…
और सच सामने उसके जन्नत भी जमीं का धुल होगा,

गर है खुदा कहीं तो अब आके वही बताये मुझे,
कि क्या कोई तस्वीर भी उसकी,
उसके हुस्न से ज्यादा सुन्दर होगा?

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