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भीगती नदी

ख़ामोशी...
ख़ामोशी...
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मैं देख रहा हूँ
पता नही कबसे
देखता रहूंगा पता नही कबतक
इस शाम के अंधेरे में
कितना प्रकाश है
इस खामोशी में
कितना संगीत है
सामने निरंतर बहती नदी
बारिश में खुलकर नहा रही है
वह पत्थर भी भींग रहा है
जिसपर बैठा हूँ मैं
वो शहर भी भींग रहा होगा
जो मेरी पीठ के पीछे है
और मैं लगातार देख रहा हूँ
इस भींगती नदी को
ये नदी और यह पत्थर
यही तो है मेरी तनहाईओं के साथी
यही तो है मेरी यादों के राजदार
रोज आता हूँ मैं यहाँ
अपनी तनहाइयों के साथ
इस पत्थर की गोद में बैठ
सुनाता चला जाता हूँ
इस नदी को अपनी कहानी
और यह नदी मूकदर्शक बन
देखती रहती है
मेरे भावो को
बिना कुछ बोले, बिना मुझे टोके
सुनती चली जाती है मेरी बातों को
पर पता नही क्यों आज पहली बार
महसूस कर रहा हूँ
शायद यह भीगती नदी
कुछ कहना चाहती है मुझसे…

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