ख़ामोशी...
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वह क्या है
जो मैं नही कर सकता हूँ
कौन कहता है
पर्वत को झुका नही सकता
हवाओं का रुख मोड़ सकता हूँ मैं
फौलाद कि अकड़ को तोड़ सकता हूँ मैं
नदियों की धाराएं उलट सकता हूँ
जीवन की सच्चाई पलट सकता हूँ
सूरज का निकलना रोक सकता हूँ
बादलों का बरसना रोक सकता हूँ
आकाश के गर्व को चूर-चूर कर सकता हूँ
तू जो एक बार कहे,
मेरे और तुम्हारे बीच की दूरियों को दूर कर सकता हूँ
पर शायद एक काम है असंभव मेरे लिए
तेरे दिल के अंधेरे में
अपनी प्यार की लौ नही जला सकता हूँ
शायद तुझे कभी अपना नही बना सकता हूँ मैं,
वरना वह क्या है…
जो नही कर सकता हूँ मैं…
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