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अभिनव त्रिपाठी
बीते दिनों से ही चीन की हरकतें भारत के लिए सामान्य नहीं थीं. जिस बात की आशंका थी अंततः हुआ वही. बीते सोमवार को यानि 15 जून की रात चीनी सैनिकों के बीच संघर्ष हुआ जिसमें भारत के कुल 20 सैनिक शहीद हो गए.सेना प्रमुख द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार भारी मात्रा में चीनी सैनिक भी या तो गंभीर रूप से घायल हुए हैं या फिर मारे गये है.हर बार की तरह इस बार भी चीनी सैनिको के मारे जाने के आंकड़े को चीनी सरकार ने छिपा लिया है.भारत और चीन के बीच हुए 1962 के युद्ध में भी मरे गए चीनी सैनिकों की संख्या को चीन ने छिपा लिया था और आज तक कोई न जान सका की वास्तविक संख्या क्या थी कितने चीनी सैनिक मारे गये थे.सोमवार के बाद से ही देखा जा रहा है कि गलवान घाटी के पास चीन काफी परेशान दिखाई दे रहा है.घाटी में भारत चीन के बॉर्डर पर चीनी सैनिक और उनसे जुड़े अधिकारीयों द्वारा काफी असामान्य हरकत देखनें को मिल रही है.
चीन खुद ही भारत के हिस्से को कब्ज़े में लेने की फ़िराक में है,उस पर से बयान जारी कर रहा है कि पहले भारत ने चीन से सटे LAC को पर करने की हिमाकत की, जो सरासर गलत है.घटनाक्रम को संज्ञान में लेते हुए खुद प्रधानमंत्री ने दो टूक कहा है कि “जवानों के शहादत का बदला हिंदुस्तान लेगा और बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा.भारत अपनें संप्रभुता, अखंडता पर आंच नही आने देगा.यदि कोई उकसाएगा तो भारत जवाब जरुर देगा”.इसी के बाद प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक शुक्रवार शाम 5 बजे बुलाई जिसमे इस विषय पर चर्चा भी हुई और सभी राजनितिक दलों के विचारों को खुद प्रधानमंत्री ने सुना.इस बैठक में प्रधान मंत्री ने सभी को इस बात का आश्वाशन दिया कि भारत के भीतर चीन एक कदम भी नहीं आया है और सेना अपना काम बड़े ही अच्छे तरीके से कर रही है.
आज भारत समेत दुनिया के सारे देश पूरी तरीके से कोरोना महामारी से जूझ रहें है.इस बीच चीन या किसी भी देश से यद्ध करना संभव नहीं है.कोरोना महामारी नें पहले ही देश को असीमित क्षति पहुंचाई है जिससे उबरने में समय लगेगा और यदि महामारी के दौरान ही युद्ध की स्थिति से देश को गुजरना पड़े तो जो नुकसान देश को होगा उसे भरने में आगे की पीढ़िय निकल जायेंगीं. इस बात से भी इंकार नही किया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर चीन नें अपनी ख्याति गवां दी है और इन सब के साथ वो न केवल भारत बल्कि अपने सभी पडोसी राष्ट्रों के साथ सीमा विवाद में उलझा है.
चीन से युद्ध जितने का सबसे बेहतर तरीका है व्यवसायिक प्रतिबंद्ध.जिससे कि चीन आंतरिक तौर पर और आर्थिक तौर पर कुछ हद तक खुद को कमजोर महसुस करे.भारत सरकार ने इस विषय को गंभीरता से लिया है और 4G के उपयोग में आने वाले BSNL और MTNL के सभी चाइना वाले सामानों के उपकरणो के उपयोग पर रोक लगा दिया है.रेलवे ने भी संजीदगी दिखाई है और मुगलसराय से कानपूर के बीच हो रहे सिगनलिंग के उपकरण में आने 471 करोड़ रूपये के ठेके को चाइना की कंपनी से रद्द कर दिया है.
दोनों निर्णय दिखा रहे हैं की सरकार भी चाइना से व्यावसायिक रिश्ते ख़त्म करते हुए नज़र आ रही है.ये एक सरल उपाय है चाइना को मुह के बल गिरानें का.इससे चीन कमजोर होगा और भारत मजबूती के तरफ आगे बढेगा.आर्थिक तौर पर बहिस्कार एक युद्ध से कम नहीं है.क्यों कि जो राष्ट्र किसी देश में अपनी अर्थव्यस्था के मुनाफे के हिस्से के लिए निर्भर है उसे ये आर्थिक झटका बर्दाश्त करने में समय लगेगा. हर क्षेत्र में चीन का सामान भारत में आयत होता है. सभी क्षेत्र ये आश्रय समाप्त कर लें तो संभव है चीन आर्थिक स्थिति से निपटने में खुद को लगाएगा.आत्मनिर्भर होने का इससे सही समय आना मुश्किल है.युद्ध से दोनों देशो को नुकसान होगा लेकिन आर्थिक बहिस्कार से चीन का ही बस.
डिस्क्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी दावे या आंकड़ों की पुष्टि नहीं करता है।
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