आज से तक़रीबन सौ साल पहले एक महत्वाकांशी भारतीय युवक एक सपना लेकर इंग्लैंड के लिए निकल पड़े और जब वापस लौटे तो उनके पास थी एक ऐसी जादुई पिटारी जो खुली आँखों से सपने दिखाती थी और इस सपने को भारतीयों ने जिया 1913 में जब किसी भारतीय द्वारा बनाई प्रथम फिल्म रुपहले परदे पर आई यह फिल्म थी ‘राजा हरिश्चंद्र’ और वह महत्वाकांशी युवक थे भारतीय सिनेमा के पितामाह दादा साहब फाल्के। उनका वह छोटा सा सपना आज करोड़ों भारतीयों के सपनो को समेटे एक भव्य रूप ले चुका है। आएये इस स्वप्ननगरी के कुछ सपनो को कुछ पल याद करे। सिनेमा का प्रारंभिक दौर मूक फिल्मो का था जिनकी कहानियां पुराणों और रामायण,महाभारत जैसे महाकाव्यों पर आधारित होती थी राजा हरिश्चंद्र के बाद की कुछ और फिल्मो जैसे लंका दहन (1917) और कालिया मर्दन (1919) ने भी दर्शको का खूब मन मोहा। 1913 के लगभग दो दशको बाद 1931 में सिनेमा जगत में एक और क्रांति आई वो थी श्री अर्देशिर ईरानी की बनाई पहली सवाक फिल्म ‘आलम आरा’ यह एक बंजारन और राजकुमार की प्रेम कहानी थी। इसके चार साल बाद 1935 में आई नितिन बोस की फिल्म ‘धूप छांव’ जिससे हिंदी फिल्मो में पहली बार पार्श्व गायन की शुरुवात हुई (इससे पहले कलाकार स्वयं आपने गाने गाते थे)। इसी दशक में कुछ और बड़ी कामयाब फिल्मे आई जिनमे से प्रमुख है बॉम्बे टाकिज की अछूत कन्या (1936), के.एल. सहगल की देवदास (1936) और 1937 आई किसान कन्या जो स्वदेश में निर्मित पहली रंगीन फिल्म थी। 40 का दशक के.एल.सहगल और अशोक कुमार का दशक था इस दशक में आई फिल्मे थी के.एल.सहगल अभिनीत हिट फिल्म ज़िन्दगी (इसी फिल्म में उनका प्रसिद्द गीत “सो जा राजकुमारी” था),अशोक कुमार अभिनीत नया संसार, बंधन(लीला चिटनिस के साथ),किस्मत, दिलीप कुमार की जुगनू इसके साथ ही भारतीय सिनेमा को अपनी पहली जांबाज़ अदाकारा नाडिया भी मिली जिन्हें नाम दिया गया था “फीअरलेस नाडिया” उनकी मशहूर फिल्मे हंटरवाली और डायमंड क्वीन इसी दशक में आई थी। 50 का दशक सिने जगत के तीन महानायकों के नाम रहा जो थे दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद। इनकी कुछ चर्चित फिल्मे थी बाबुल (दिलीप कुमार और नर्गिस),सरगम (राज कपूर ) और अफसर (देव आनंद और सुरैया)।बिमल राय की देवदास (दिलीप कुमार, वैजयंती माला और सुचित्रा सेन),दो बीघा ज़मीन (बलराज साहनी और निरूपा रॉय),दो आखें बारह हाथ (वी.शांताराम और संध्या), मधुमती (दिलीप कुमार और वैजयंती माला),अनाड़ी (राज कपूर और नूतन) दशक की कुछ अन्य चर्चित फिल्मे थी।गीता दत्त और दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म जोगन भी इसी दौर की थी जिसमे गीता दत्त का गया गीत “घूंघट के पट खोल रे” काफी प्रसिद्द हुआ था,भारत की पहली आस्कर नामांकित फिल्म मदर इंडिया (सुनील दत्त, नर्गिस और राजेंद्र कुमार) इसी समय 1957 में आई थी और फ़िल्मी दुनिया में एक ताज़ा हवा का झोका आया गुरु दत्त की प्यासा के रूप में जिसने सफलता के नए शिखरों का निर्माण कर दिया। 60 का दशक सिने जगत का सुनहरा दशक था जिसकी शुरुवात हुई के.आसिफ की कालजयी फिल्म मुग़ल- ऐ -आज़म से। इसी समय सिनेमा के गगनमंडल में कुछ नए सितारे भी उदित हुए जिनमे से प्रमुख थे शम्मी कपूर, राजेश खन्ना, संजीव कुमार, धर्मेन्द्र, अमिताभ बच्चन, जीतेंद्र, हेमा मालिनी, मुमताज़, शर्मीला टैगोर और राजेंद्र कुमार। इस दौर की की क्लासिक फिल्मो की फेहरिस्त बहुत लम्बी है जिनमे से प्रमुख है छलिया (राज कपूर, नूतन और प्राण), बरसात की रात (भारत भूषण और मधुबाला) इस फिल्म में मन्ना डे द्वारा गयी कव्वाली “न तो कारवां की तलाश है” ने खूब वाहवाही बटोरी थी, कोहिनूर (दिलीप कुमार, मीना कुमारी और लीला चिटनिस), चौदहवीं का चाँद (गुरु दत्त और वहीदा रहमान),जिस देश में गंगा बहती है(राज कपूर, पद्मिनी और प्राण ), लव इन शिमला (जोय मुखर्जी और साधना), काला बाज़ार (देव आनंद, वहीदा रहमान और नंदा), हावड़ा ब्रिज (अशोक कुमार और मधुबाला) इस फिल्म से हेलन “मेरा नाम चिन चिन चू” गीत से दशक की एक प्रमुख नर्तकी के रूप में उभरी। 70 के दशक को अगर राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन का दशक कहे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी इस दौर में उन्होंने एक से एक बहतरीन फिल्मे दी जिनमे से राजेश खन्ना की प्रमुख फिल्मे है सच्चा झूठा (मुमताज़ के साथ), अमर प्रेम (शर्मीला टैगोर के साथ),कटी पतंग (आशा पारिख के साथ ),सफ़र (शर्मीला टैगोर के साथ), आनंद, बावर्ची और दाग (शर्मीला टैगोर और राखी के साथ)।अमिताभ की कुछ बेहतरीन फिल्मे इसी दशक में आई थी जैसे मुकद्दर का सिकंदर ( रेखा, विनोद खन्ना और राखी के साथ), अमर अकबर एंथोनी, ज़ंजीर, अभिमान और मिली (जाया भादुड़ी के साथ), दीवार(शशी कपूर और नीतू सिंह के साथ) और त्रिशूल(संजीव कुमार, शशी कपूर, राखी, हेमा मालिनी के साथ )।इस दौर की कुछ और उल्लेखनीय फिल्मे है जौनी मेरा नाम (देव आनंद, प्राण और हेमा मालिनी), पूरब और पश्चिम (मनोज कुमार और सायरा बानो), हमजोली (जीतेंद्र और लीना चंदावरकर), खिलौना(संजीव कुमार,जीतेंद्र और मुमताज़), पाकीज़ा (राज कुमारऔर मीना कुमारी), गोपी (दिलीप कुमार, सायरा बानो और मुमताज़), प्रेम पुजारी (देव आनंद और वहीदा रहमान), राज कपूर की बहुचर्चित फिल्म मेरा नाम जोकर, बौबी(ऋषि कपूर और डिम्पल कपाडिया) और भारतीय सिनेमा की मील का पत्थर शोले (अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, संजीव कुमार, हेमा मालिनी, जाया भादुड़ी और अमजद खान) जैसी फिल्मो से यह दशक चकाचौंध रहा, हिंदी सिनेमा को अपना नाम बॉलीवुड भी इसी दशक में मिला। 80 के दशक में में आये एक नए आविष्कार से फिल्मी दुनिया को खासा नुकसान उठाना पड़ा और वह था विडियो कैसेट पर इसके साथ ही 70 के दशक में दस्तक दे चुके नए यथार्थवादी सिनेमा (जिसे पैरेलल सिनेमा के नाम से पुकारा गया) का व्यापक विकास हुआ और परदे पर कुछ बेहतरीन कलाकारों ने अपनी कला के जौहर दिखाए जिनमे से प्रमुख थे नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर, स्मिता पाटिल, शबाना आज़मी,अमोल पालेकर और ओम पुरी।इन लोगो ने उस समय की कुछ बेहतरीन फिल्मे दी जिनमे से उल्लेखनीय है स्पर्श (नसीरुद्दीन शाह और शबाना आज़मी ), अर्थ (स्मिता पाटिल और शबाना आज़मी) , अर्ध सत्य (ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह और स्मिता पाटिल ),आक्रोश (नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और अमरीश पुरी ), और जाने भी दो यारो (नसीरुद्दीन शाह, राज बासवानी,पंकज कपूर और ओम पुरी)।दशक की कुछ और बड़ी फिल्मे है क़ुरबानी (फिरोज खान, जीनत अमान, अमज़द खान और विनोद खन्ना ), लावारिस (अमिताभ बच्चन और जीनत अमान), शान (अमिताभ बच्चन, शत्रुगन सिन्हा, परवीन बाबी और शशि कपूर),मिस्टर इंडिया (अनिल कपूर,श्री देवी और अमरीश पुरी)क़यामत से क़यामत तक (आमिर खान और जूही चावला) और मैंने प्यार किया (सलमान खान और भाग्य श्री)। 90 के दशक में सिनेमा के नभ में खान तिकड़ी(सलमान खान, शाहरुख़ खान और आमिर खान) का उदय हुआ साथ ही सनी देओल और संजय दत्त ने भी कई बेहतरीन फिल्मे देकर दर्शको का मन मोहा। यह दशक जाना जात है अपनी मसाला फिल्मो के लिए जिनमे है दिल (आमिर खान और माधुरी दीक्षित), घायल (सनी देओल और मिनाक्षी शेषाद्री), खलनायक (संजय दत्त,जैकी श्रौफ़ और माधुरी दीक्षित), हम आपके है कौन (सलमान खान और माधुरी दीक्षित), दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे (शाहरुख़ खान और काजोल) और कुछ कुछ होता है (शाहरुख़ खान, रानी मुखर्जी और काजोल)। 2000 से अब तक सिनेमा में काफी बदलाव आ चुका है एकल पर्दों की जगह अब मल्टीप्लेक्सों ने ले ली है, 3 – डी तकनीक से फिल्मे बने लगी है और विडिओ कैसेट की जगह ले ली है सी.डी और डी.वी.डी ने। खान तिकड़ी अभी भी छाई हुई है और इनके साथ मनोरंजन की रौशनी बिखरा रहे है अक्षय कुमार, अजय देवगन, हृतिक रौशन, अभिषेक बच्चन, ऐश्वर्या राय, कटरीना कैफ, प्रियंका चोपड़ा और करीना कपूर जैसे सितारे। यह वक़्त गवाह रहा है सिनेमा की अब तक की सबसे कमाऊ फिल्मो का जैसे बाडीगार्ड (सलमान खान और करीना कपूर), गजनी (आमिर खान और आसिन), दबंग (सलमान खान और सोनाक्षी सिन्हा) और डौन-2 (शाहरुख़ खान और प्रियंका चोपड़ा)। भारतीय सिनेमा की दूसरी ऑस्कर नामांकित फिल्म लगान (आमिर खान और ग्रेसी सिंह) भी इसी समय आई, इस दौर में कई बेहतरीन फिल्मो ने सिनेमा जगत में एक नया अध्याय जोड़ दिया जिनमे प्रमुख है 3 इडियट्स, तारे ज़मीन पर, चक दे इंडिया, रंग दे बसंती, मुन्ना भाई एम्.बी.बी.एस , लगे रहो मुन्ना भाई, कहानी और पान सिंह तोमर। फिल्मो कि बात हो और गीत संगीत कि बात न आये तो कुछ अधूरा सा रह जाता है पर यह विषय काफी विस्तृत है तो इसके बारे एक अलग लेख में जानेगे तब तक के लिए यह सफरनामा यहीं समाप्त करते है और उम्मीद करते है कि आगे भी सिनेमा जगत ऐसे ही हमारा मनोरंजन करता रहेगा।
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