- 12 Posts
- 1 Comment
अभिनय आकाश
भगवा है पद्मिनी के जौहर की ज्वाला, मिटाती अमावस लुटाती उजाला. नया एक इतिहास क्या रच न डाला, चिता एक जलने हज़ारों खड़ी थी. पुरुष तो मिटें नारियां सब हवन की, समिध बन ननल के पगों पर चढ़ी थी. मगर जौहरों में घिरे कोहरों में, घिरे के घनो में कि बलि के क्षणों में धधकता रहा पूज्य भगवा हमारा…निम्न पंक्तियां देश के पूर्व प्रधानमंत्री और कवि अटल बिहारी वाजपेयी ने पद्मिनी के जौहर को प्रस्तुत करते हुए वर्षों पहले कही थी. वर्तमान समय में पद्मावती के विवादों का जौहर थमने का नाम नहीं ले रहा है. फ़िल्म पद्मावती से पद्मावत हो गई तब जाकर सेंसर बोर्ड से फ़िल्म को सर्टिफिकेट मिला. बावजूद इसके भाजपा शासित चार राज्यों ने फ़िल्म पर बैन लगा दिया था. जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट जाता है.
“जब संसद ने वैधानिक तौर पर बोर्ड को जिम्मेदारी दी है और बोर्ड ने फ़िल्म को सर्टिफिकेट दिया है तो कानून व्यवस्था का हवाला देकर राज्य फ़िल्म पर बैन कैसे लगा सकते हैं?” अभिव्यक्ति की आज़ादी को पाबंदी पर तरजीह देते हुए सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों ने पद्मावत पर राज्यों की पाबंदी को गलत ठहराते हुए फ़िल्म के रिलीज़ को हरी झंडी दे दी. फ़िल्म 25 जनवरी को रिलीज होगी लेकिन रिलीज होने और सिनेमाघरों में फ़िल्म देखने और दिखाने में बड़ा अंतर होता है. करणी सेना से लेकर भाजपा शासित राज्यों की सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ जाने के अलग-अलग तरीके के संकेत दिए हैं. उससे साफ है कि फ़िल्म का विरोध सड़क से लेकर थियेटर तक होगा. इस बार करणी सेना अपनी आस्था और अभिव्यक्ति की आज़ादी का हवाला देकर कोर्ट से दो-दो हाथ करने को तैयार है. ऐसे में इम्तिहान राज्य की सरकार का है कि कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए वो किस हद तक जा सकती है. करणी सेना फ़िल्म को राजपूती सम्मान की लड़ाई बता रही है और फ़िल्म बनाने वाले फ़िल्म को राजपूती दस्तावेज. इसी घमासान के बीच सेंसर बोर्ड ने फ़िल्म का नाम बदला और फ़िल्म में पांच बड़े बदलाव सुझाएं, जिन बातों पर करणी सेना को ऐतराज था. फ़िल्म पहले दिसंबर में रिलीज़ होने वाली थी उनकी तारीख 25 जनवरी हो गई. लेकिन सारी कवायद का नतीजा जस का तस है.
यह अभिव्यक्ति का खेल है या इतिहास से छेड़छाड़ का मामला लेकिन राजपूत वोटों के गणित में उलझी सियासत के लिए पद्मावत एक चुनौती बन चुकी है. जिसे सुलझाना और बच कर निकलना दोनों मुश्किल है. राजस्थान में 29 जनवरी को अजमेर और अलवर लोकसभा सीट तो मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने हैं. इसके अलावा मध्यप्रदेश और राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव भी होने है. राजस्थान में करीब 12 फीसदी तो मप्र में करीब 10 फीसदी राजपूत वोट हैं. और तो और देश की कुल 15 राज्यों की 500 विधानसभा सीटों पर राजपूत समुदाय का प्रभाव है. राजपूत समुदाय द्वारा पद्मावत के खिलाफत को देखते हुए उन्हें नज़रअंदाज़ करने से भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भारी खामियाजा उठाना पड़ सकता है. यानि अभिव्यक्ति की आज़ादी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश तक पर चुनावी गणित और सियासत की पेंचीदगी आने वाले दिनों में बनी रहने की पूरी संभावना है.
Read Comments