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अभिनय आकाश
शिक्षा से मैं एक इंग्लिशमैन हूं, कल्चर से मुस्लिम और बाई बर्थ हिन्दू. सर्च इंजन गूगल पर जवाहर लाल नेहरु के नाम से ऐसे कथन अंग्रेजी में मिल जाएंगे. भाजपा नेता भी इस कथन को नेहरु द्वारा कहे जाने की बात कई सार्वजनिक मंच पर कर चुके हैं. हिंदी की एक मशहूर कहावत है किसने कही यह गूगल पर उपलब्ध नहीं लेकिन फिर भी बता रहा हूं ‘कंगाली में आटा गीला होना’. भाजपा और नरेन्द्र मोदी के किले को भेदने की गोलबंदी में लगी कांग्रेस और उसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी के धर्म को लेकर विवाद पैदा हो गया है.
गुजरात के चुनावी ग़दर में जब दो दिग्गज दो-दो हाथ कर रहे थे. तब ऐसा ही एक विवाद सोमनाथ यात्रा के बाद राहुल के साथ चस्पा हो गया. विवाद की शुरुआत राहुल गांधी और अहमद पटेल का नाम सोमनाथ मंदिर की उस अतिथि पुस्तिका में दर्ज होने से हुई, जो गैर हिन्दुओं के लिए निर्धारित है. कहा गया कि राहुल के ही मीडिया कॉर्डिनेटर मनोज त्यागी ने सोमनाथ के उस रजिस्टर में अहमद पटेल के साथ राहुल गांधी की भी इंट्री कर दी जिसमें गैर हिन्दुओं की इंट्री की जाती है. अब इसे राहुल के करीबी की भूल कहे, साजिश या अज्ञान, लेकिन इस चूक से गुजरात में 22 सालों के भाजपा शासन को चुनौती देने के कांग्रेस प्लान की धार कमजोर भी हो सकती है. गांधी परिवार पर जुबानी हमले करने के लिए मशहूर सुब्रह्मण्यम स्वामी को तो जैसे एक मौका मिल गया. उन्होंने दस जनपथ में चर्च और हर रविवार को वहां प्रेयर होने की बात करते हुए राहुल के हिन्दू होने पर सवाल भी खड़े कर दिए. मामले को तूल पकड़ता देख डैमेज कण्ट्रोल के लिए पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला सामने आते हुए राहुल को शिव का परम भक्त और जनेऊधारी हिन्दू बताया. कांग्रेस ने चुनावी नामांकन, बहन की शादी और पिता राजीव गांधी के अंतिम संस्कार में भी हिन्दू परंपरा का निर्वाह करने की बात करते हुए कुछ पुरानी तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर शेयर कर दी.
गौरतलब है कि चुनावी मौसम के बीते डेढ़ महीने में राहुल 21वीं बार जयकारे लगाते हुए मंदिर में दर्शन के लिए गए. राहुल ने द्वारका में माथा टेककर गुजरात में अपनी नवसर्जन यात्रा शुरू की थी. सोमनाथ और द्वारकाधीश के अलावा राहुल गांधी अब तक अक्षरधाम मंदिर, कबीर मंदिर, चोटिला देवी मंदिर, दासी जीवन मंदिर, शंकेश्वर जैन मंदिर, पावागढ़ महाकाली, वीर मेघमाया, बादीनाथ मंदिर, कागवड के खोडलधाम, नाडियाड के संतराम मंदिर, नवसारी में ऊनाई मां के मंदिर, बहुचराजी मंदिर, राजकोट के जलाराम मंदिर और वलसाड के कृष्णा मंदिर में जाकर दर्शन कर चुके हैं. राहुल ने कहा भी था कि मैं शिवभक्त हूं और सत्य में विश्वास रखता हूं. इस विवाद से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने भी राहुल गांधी के मंदिर जाने पर सवाल उठाते हुए कहा था कि आज जिन्हें सोमनाथ याद आ रहे हैं उन्हें इसका इतिहास भी नहीं पता. तुम्हारे परनाना, तुम्हारे पिता जी के नाना, तुम्हारी दादी मां के पिता जी, जो इस देश के पहले प्रधानमंत्री थे. जब सरदार पटेल सोमनाथ का उद्धार करा रहे थे तब उनकी भौहें तन गईं थीं.”
देश की आज़ादी के सात दशक बाद भी 21वीं सदी में मूल मुद्दे से इतर चुनाव जाति और धर्म के नाम पर ही हो रहे हैं. भले हम मंगल पर जाने की बातें करते हैं और विश्व शक्ति बनने की चाहत रखते हैं. लेकिन यह निराशाजनक है कि चुनाव में जाति और धर्म ही मुख्य राजनीतिक भूमिका के केंद्र में होती हैं. रोल मॉडल राज्य माना जाने वाला गुजरात इसका जीवंत उदाहरण है.
एक तरफ कांग्रेस जाति की बिसात पर भाजपा को मात देने की जुगत में है तो भाजपा अपने हार्ड कोर हिन्दू कार्ड के भरोसे कांग्रेस को क्लीन बोल्ड करने की चाहत लिए है. जाति फ़ॉर्मूले में उलझ कर भाजपा बिहार का चुनाव गवां चुकी है लेकिन वहां परिस्तिथियां दो विरोधी लालू+नीतीश के साथ आने से अलग बन गयी थी. लेकिन गुजरात के तीनों लड़कों हार्दिक,अल्पेश और जिग्नेश को साथ लेकर राहुल मोदी को जातीय गणित में उलझाना चाहते हैं. ऐसे में भाजपा भी कभी हिन्दू आतंकवाद जैसे पुराने मुद्दे और अब राहुल के धर्म पर सवाल उठाकर धार्मिक गोलबंदी बनाने की कोशिश में हैं. क्योंकि गुजरात का पुराना इतिहास रहा है कि जब-जब यहां धार्मिक ध्रुवीकरण हुआ है तो सारे समीकरण धरे के धरे रह गए हैं. बहरहाल गुजरात के चुनावी फिजां में जाति फैक्टर काम करता है या धर्म कार्ड इसका सही विश्लेषण चुनाव परिणाम के दिन यानि 18 दिसंबर को ही पता चलेगा.
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