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अभिनय आकाश
आज से ठीक एक साल पहले यानि 8 नवंबर के ही दिन देश के निज़ाम नरेंद्र मोदी ने एक फैसले से अपने प्यारे देशवासियों को इमानदारी के एक आंदोलन में शामिल कर दिया. कहा गया कि यह आंदोलन काले धन, नकली नोट और आतंकवाद के खिलाफ है. उस वक्त फैसले से देश पर नगदी की मार और पैसे-पैसे को मोहताज मुल्क की मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही थी. देश की बैंकों के बाहर कतार में खड़े लोग बैंकों से पैसे वाले बाबू मेरा पैसा दिला दो कहते दिखें. एनी टाइम मनी कहे जाने वाली एटीएम मशीने भी देश की करेंसी क्रांति के सामने आहें भरती नज़र आई. फैसले के एक साल बाद सरकार के विरोधी कहते हैं नोटबंदी ने सबकुछ छीन लिया. मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्री कहते हैं नोटबंदी करना भारी भूल थी. यशवंत सिन्हा कहते हैं नोटबंदी के बाद बैक टू बैक जीएसटी लागू करने से अर्थव्यवस्था की कमर टूट गयी. वहीँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं नोटबंदी कालेधन के विरोध का राष्ट्रीय पर्व है.
ये सब तो अर्थशास्त्र की बड़ी-बड़ी बातें हैं. एटीएम की लाईन में खड़े हो चुके आम आदमी के लिए जीडीपी और एनपीए जैसे शब्दों में नोटबंदी के नफ़ा-नुकसान को समझना मुश्किल है. नोटबंदी ने देश को कुछ दिया या देश से कुछ छीना आईए आंकड़ों से समझते हैं.
ई-रिटर्न दाखिल करने वाले नोटबंदी से पहले 2.35 करोड़ लोग हुआ करते थे वहीँ नोटबंदी के बाद इनकी संख्या 3.01 करोड़ हो गयी है. नोटबंदी से पहले 66.53 लाख कर दाता की संख्या थी तो नोटबंदी के बाद 84.21 लाख हो गयी. मोबाईल वॉलेट से लेनदेन की रकम 3,074 करोड़ थी तो नोटबंदी के बाद यह रकम 7,262 करोड़ हो गयी. डिजिटल भुगतान में भी इजाफा हुआ है जो पहले 8.7 करोड़ हुआ करती थी वह अब 138 करोड़ रूपए तक दर्ज हुई है. इसके अलावा 17.73 लाख संदिग्ध बैंक लेनदेन का पता चला है. सरकार ने 2.24 लाख फर्जी कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया. 7.62 लाख फर्जी नोट जब्त हुए जबकि 16 हज़ार करोड़ रूपए वापस बैंक में जमा नहीं हुए. 29,213 करोड़ रूपए की अघोषित आमदनी का पता चला. बैंकों से कर्ज लेना सस्ता हुआ और रियल एस्टेट के दामों में कमी आई साथ ही 1626 करोड़ रूपए की बेनामी संपत्ति जब्त की गयी. नक्सली घटनाओं में 20% की कमी आई और कश्मीर में पत्थरबाज़ी की घटनाओं में भी कमी दर्ज की गयी. ये सब तो हो गए नोटबंदी के कमाल अब आते हैं विपक्षियों के उठाए सवाल पर. देश की जीडीपी में गिरावट आई. नोटबंदी के दौरान 100 से अधिक लोगों की जान गई. सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकलन के अनुसार, नोटबंदी के बाद पहले चार महीनों में 15 लाख लोगों ने रोजगार गंवा दिया. नोटबंदी का नुकसान छोटे उद्योगों पर भी देखने को मिला, खासकर उन पर जहां कैश में लेन-देन होता था. इसकी वजह से रोजगार ठप्प पड़ गया और कई व्यापारियों को घर बैठना पड़ा. कृषि के क्षेत्र में लेन-देन ज्यादातर नकदी में होता है और उस पर भी नोटबंदी का प्रभाव देखने को मिला. कई किसानों ने जगहों-जगहों पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी किया. नए नोटों की छपाई की लागत दोगुनी हो गयी.
बहरहाल 2016 की नोटबंदी मोदी सरकार का ऐतिहासिक कदम हो सकता है. जिससे बड़ी आबादी को बिना किसी गलती के कतार में खड़ा होना पड़ा. उसने कष्ट झेला, काम धंधे पर असर पड़ा फिर भी उसने विद्रोह नहीं किया. सरकार के इस कदम से लोगों में भरोसा जगा की सरकार ने नोटबंदी का सही कदम उठाया है. मोदी सरकार भी इसके दूरगामी परिणाम बताती रही है. बदलते भारत का आर्थिक ढांचा क्या होगा, यह टिप्पणी करना अभी जल्दबाजी होगी, आगामी बजट इत्यादि भारत की नयी अर्थव्यवस्था का आधार गढ़ेंगे. अंततः ये देखना होगा कि हम अपने देश को एक स्वच्छ देश में रूप में आगे बढ़ाए. अगर हम लगातार लोगों को यह बताते रहें कि यह भ्रष्ट देश है, यहां कालाधन चलता है तो यह हमारी छवि के लिए हितकर नहीं है.
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