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पीरियोडिक फिल्मों के विरोध का इतिहास

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अभिनय आकाश
सिनेमा जगत में इतिहास से जुड़े किरदारों या किसी घटना पर आधारित फिल्में समय-समय पर बनती रही हैं. लेकिन इन फिल्मों के साथ विवाद और विरोध का सिलसिला भी हमेशा बरक़रार रहा है. ऐतिहासिक किरदारों के इतिहास को जब-जब पर्दे पर जीवंत करने की कवायद हुई है तब-तब कोहराम मचा है. जैसा आज पद्मावती को लेकर मचा है. वैसे तो बॉलीवुड में लंबे समय से पीरियोडिक फिल्म बनाने का दौर रहा है. चाहे वो बादशाह अकबर पर बनी जोधा-अकबर रही हो या चक्रवर्ती सम्राट अशोक पर बनी अशोका. दर्शकों की जितनी रुचि सांइस, फिक्शन बेस्ड फिल्मों के लिए है उतनी ही दिलचस्पी उनकी इतिहास के रोचक मुद्दों पर रही है. लेकिन इन हिस्टोरिकल ड्रामा फिल्मों को बनाना शायद डायरेक्टर्स के लिए उतना आसान नहीं है. कई सालों की रिसर्च के जरिए तथ्यों को खंगालकर उसे पर्दे पर उतारना अपने आप में ही एक डायरेक्टर के लिए बड़ी चुनौती है. लेकिन इसी बीच फिल्म को लेकर कोई विवाद खड़ा हो जाए तो फिल्म की रिलीज को लेकर मुश्किलें और भी बढ़ जाती हैं. इतिहास के पन्नों से उलझते फ़िल्मी जगत की ऐसी ही कुछ फिल्मों पर एक नज़र डालते हैं.
लगभग 160 करोड़ की लागत से बनी फिल्म पद्मावती की भव्यता ऐसी की महीने भर पहले फिल्म का प्रोमो जब रिलीज़ हुआ तो एक ही दिन में 20 लाख से ज्यादा लोगों ने उसे देख लिया. दर्शक,समीक्षक सभी ने संजय लीला भंसाली और उनकी टीम की सराहना के पुल बांधे. लेकिन फिल्म में रानी पद्मावती की जिंदगी के चित्रण को लेकर कुछ समुदायों ने सवाल खड़े कर दिए. कुछ संगठनों का आरोप है कि पद्मावती के चरित्र के साथ छेड़छाड़ की जा रही है. विरोध का आलम यह हो गया की फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर रोज नए-नए विवाद और ओछे बयान सामने आने लगे. राजपूत करणी सेना के महिपाल सिंह मकराना ने दीपिका पादुकोण की नाक काटने की धमकी तक दे दी तो वहीँ संजय लीला भंसाली की गर्दन तक काट कर लाने वाले को इनाम देने तक की घोषणा की जाने लगी. हालांकि सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म को लौटाए जाने की बात सामने आने के बाद पद्मावती के रिलीज़ पर तत्काल तो ग्रहण लग गया. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब सिनेमा जगत को विरोध से दो-चार होना पड़ा है. इससे पहले भी साल 2015 में आई संजय लीला भंसाली की ही फिल्मस ‘बाजीराव मस्तानी’ पर भी इतिहास से छेड़छाड़ और भावनाओं को आहत करने का आरोप लग चुका है. बाजीराव मस्तावनी के रिलीज के समय इस फिल्मर का पुणे में जमकर विरोध हुआ था. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को लिखे एक पत्र में पेशवा के वंशज प्रसादराव पेशवा ने सरकार से इस मामले में दखल देने की मांग की थी उन्होंने आरोप लगाया, ‘यह पाया गया है कि रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर इस फिल्म में मूल इतिहास को उलटा गया है. संजय लीला भंसाली की फिल्म रामलीला को लेकर भी विवाद काफी रहा था. फिल्म का नाम मर्यादा पुरुषोत्तम राम से मिलने की वजह से मुकदमा भी दर्ज हो गया था. विवाद के बढ़ने के बाद फिल्म का नाम बदलकर गोलियों की रासलीला रामलीला करना पड़ा था.
किरदार से खिलवाड़ का आरोप 2008 में जोधा-अकबर को भी झेलना पड़ा था. नेशनल अवार्ड विजेता आशुतोष गोवारिकर की इस फिल्म को अपनी आन–बान-शान का हवाला देते हुए राजपूती समाज ने अपने इतिहास मिट्टी में मिलाने का आरोप लगाया था. पद्मावती की ही तरह जोधा अकबर को लेकर बवाल ऐसा मचा की राजस्थान में फिल्म की स्क्रीनिंग रोकनी पड़ी. साल 2005 में आई केतन मेहता की मंगल पांडे को भी विरोध का अमंगल झेलना पड़ा था. 1857 की क्रांति पर आधारित इस फिल्म से भावनाएं इसलिए आहत हुई कि मंगल पांडे जैसे वीर का रिश्ता किसी तवायफ के साथ कैसे हो सकता है. फिल्म का विरोध मंगल पांडे के गांव से लेकर सियासी मैदान तक भरपूर हुआ.
आज इन फिल्मों को बीते हुए कल पर गलत रौशनी डालने का आरोप लग रहा है. कभी यही आरोप महात्मा गांधी पर बनी फिल्म को एक अंग्रेज़ रिचर्ड एटनबरो द्वारा बनाये जाने पर भी सवाल हुआ था. वैसे विरोध की ज्वाला प्रियदर्शन की ओ माय गॉड और राजकुमार हिरानी की पीके पर भी धधकी थी. आरोप धर्म का मजाक उड़ाने का लगा था. वैसे 1959 में ‘नील अक्षर नीचे’ केंद्र सरकार के हाथों बैन होने वाली पहली देशी फिल्म थी.
सिनेमा जगत और विरोध के इस इतिहास में ऐसी और कई नाम मिल जाएंगे जिसका समय-समय पर विरोध किया गया है. इन सब बातों से इतर हाल ही में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के जीवन पर आधारित फिल्म ‘एन इनसिग्निफिकेंट मैन’ की रिलीज़ रोकने की याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत की कुछ लाईन. ‘’विचार अभिव्यक्ति का अधिकार पवित्र और अटल है. सामान्य तौर पर इसमें दखल नहीं दिया जा सकता. फिल्म बनाना, नाटक करना, किताब लिखना कला का हिस्सा हैं. किसी कलाकार को इससे नहीं रोका जा सकता.”

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