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असली फ़र्ज

Poem
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एक सदी अब बीत गयी है भूरे धोखेबाजों को,
धोखा देकर जब मारा था बाग में मेरे भारत को।
कोई नहीं था सुनने वाला भारत की इस त्राहि का,
ऊधम सिंह ने लन्दन जाकर किया ख़ात्मा डायर का।

वे शहीद अब देवलोक में अंग बने बैठे हैं जी,
वे शहीद अब इंद्रधनुष के रंग बने बैठे हैं जी।
याद उन्हें करके भारत का कर्ज़ अदा तुम कर देना,
“असली फ़र्ज” अदा करके तुम ज्योति नयी जगा देना।।

लाल आज भी मिट्टी है वो जहाँ चली थीं गोलियाँ,
छिद्र अभी भी जीवित हैं और जीवित हैं वे बोलियाँ।
शोर अभी भी जीवित है आज़ादी के परवानों का,
त्याग अभी भी जीवित है जोश भरे उन लालों का।

आज समय में पोस्ट डालकर फर्ज़ अदा कर देते हो,
उन सबकी तुम हँसी उड़ाकर दाग हरा कर देते हो।
एक बार मूरत पर उनकी आँसू तुम टपका देना,
“असली फ़र्ज” अदा करके तुम ज्योति नयी जगा देना।।

-अभिषेक रुहेला (फत्तेहपुर विश्नोई, मुरादाबाद-उ०प्र०)

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