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ऐसी हैं आधुनिक नारी

कविता
कविता
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पति को चटनी समझे
सॉस – ससुर को वासी तरकारी
घर में चलता सिर्फ इसी का
ऐसी हैं आधुनिक नारी .

कभी – कभी आफिस को कार्यों में इतना मसगुल हो जाती
बिता रात सुबह घर को आती
पति महोदय पूछ पड़ते तो –
कभी फटता कुरता तो कभी फटती साडी .
अभिषेक अनंत

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