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इंतज़ार नयी सुबह का

कविता
कविता
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किसको – किसको हम खोते रहेंगे ?
कितनी हत्याएँ और कितने बलात्कार होते रहेंगे ?
जागो मानवता की रक्षा करने वालों !
कब तक हम यूँ ही सोते रहेंगे ?
कल दामिनी आज शीला
कभी किसी और की बारी आयेगी .
अगर ऐसा ही चलता रहा तो –
एक दिन भयंकर समस्या बन जाएगी .
कठोर दंड के लिए हो संविधान संशोधन !
कब तक द्रोपती की साडी खींचते रहेंगे दुर्योधन
और सभा में मौन बैठेंगे सभाषद ;
कुछ तो परिवर्तन दिखाइए युवागण !
इंतजार नयी सुबह का
कब तक खत्म कराएगी सरकार !
देखे ! बदलता है कानून या –
उठता है कोई और सवाल .

अभिषेक अनंत

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