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दामिनी को श्रध्दांजलि (१६ -१२-२०१२ )

कविता
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ak guddu1
कहाँ से तू चली थी ?
कहाँ तुझको जाना था ?
सब कोई इंसाफ की दुहाई दे रहा ,
पर, किसी ने सोचा है क्या ?
कैसे सपने थे तेरे अंदर !
किस कदर तुमने उन्हें संजोये थे ?
अन्तः मन का दीपक अंदर ही बुझ गए ,
जो तेरे स्वप्न पलकों पे जवान हुए थे .
सजा मिलेगी दोषियों को ,
फिर ना कोई ऐसा कर पायेगा .
शायद , कानून बन जायेगा लड़कियों की सुरकक्षा में .
पर , मैं पूछता हूँ –
कि क्या कोई तेरे स्वपनों को साकार कर पायेगा .
अभिषेक अनंत

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