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दोषी कौन ?

कविता
कविता
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ठहरो बदनाम गलियों में जाने वालों !
कलि समझ फूल से टकराने वालों !
रुक जाना वही जहा कदम डगमगाए ;
क्यों खता दर खता कर रहे हो ज़माने वालों .
उन गलियों में जाने का शौक हैं तुम्हें ,
जहाँ रोज कलियाँ फूल बना करती हैं !
लुटाती हैं तुम पर जवानी जौहर ,
ढाती है जो समाज में कहर .
मैनें भी सोचा कभी उन गलियो में जाये !
किसी मदमस्त कलि से प्यार जता आये !
पर , आधी रस्ते से लौट आये हम ,
क्यूकिं पास में नज़ारा था , थी आँखे नम .
दादा – परदादा गए हैं वहां !
हम भी वहां जाते रहेंगे !
आखिर कब तक अपने ही हाथों से
अपनी रिश्तों का खूंन बहते रहेंगे !
कौन जानता है कि कौन माँ है वहां
और कौन बहन कि रिश्ते से बंधी हैं .
सब टूट पड़ते हैं उसी पे –
जो दिखती मदमस्त कलि है .
विडम्बना है समाज में रीति-रिवाजों का
जो लौकिक सदाचार दिखाते हैं .
कभी माँ के साथ तो कभी उसकी बेटी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं .
तो सोचिये फिर अंतर है क्या ?
क्यों किसी को बेटी तो किसी को पत्नी बुलाते है ?
समाज में अंधकार इसतरह है कि –
कोई नहीं समझ पाते हैं .
अभिषेक अनंत

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