कविता
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बतकही कर रही है जनता
चुनाव और चुनावी माहौल पर .
अपना हर हथकंडा अपना रहा प्रत्याशी है.
घात पे घात किया है , जिसने वहीँ माग रह माफ़ी है ?
किसको हम वोट दें ?
किसके पक्ष में मतदान करें ?
भेड़ के वेश में छुपा हो भेड़िया !
कैसे हम पहचान करें ?
वादें हजार करते प्रत्याशी लोग .
चुनाव के बाद भूल जाते हैं .
कैसे यक़ीन करें हम इन पर ?
पांच साल बाद ही क्यूँ हम याद आते है ?
भूल हुई अबतक जितनी
सबका हक़ अदा करना है .
वोट उसी को दे जो लायक हो ,
पार्टियों और नेताओं से क्या करना है ?
भूल की भान हुई अब तो
सबका हक़ अदा कर लीजिये !
अबकी बार प्रजातंत्र स्वस्थ्य हो जाये !
इसतरह मतदान कर दीजिये !
अभिषेक अनंत
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