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मानव वंदना

कविता
कविता
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सर्वेश्वर के अंश हो तुम !
गरल विषधारी के दंश हो तुम !
दिखाते हु उसी की तरह !
कितने बड़े संत हो तुम !

कभी सुनार-बढ़ई तो कभी लोहार हो तुम !
समयानुकूल राजा और भिखार हो तुम !
तुम में मुझे ईश्वर दिखते ;
ईश्वर के अंशावतार हो तुम !

सत्य – सयम – ज्ञानवान ,ऊच्च चरित्र है तुम्हारे !
संपूर्ण जगत में श्रेस्ट हो तुम , तुम से सब है हारे .
शेर दहाड़ता है , मांस भी खाता है , पर तुम से डरता है .
हाथी की विशाल काया भी ,तुम्हारे आगे पे -पे करता है .

सर्व गुण समाहित है तुम में ,
संपूर्ण जगत के सबल अधिकारी हो .
कितना धर्म – अधर्म है तुम में ,
समयानुकूल कर्ता बलशाली हो .

तुम अतिशूक्ष्म और अतिसबल हो !
दुनिया की सारी गतिविधियाँ तुम्हारे ही लिए गतिमान है !
हे ईश्वर की अनुपम कृति ! तुम्हारी जय हो .
तुम सबसे महान हो !

अभिषेक अनंत
ग्राम – मंझरिया , पोस्ट -मठिया , थाना – लौरिया
जिला – प० चंपारण (बिहार ) – ८४५४५३

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