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मेरा पहला बच्चा /३०-३१-०३-२०१४(लघु कथा)

कविता
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मेरी पत्नी ने मुझे फोन किया -“हम लोग हॉस्पिटल जा रहे हैं .”
मैंने उत्तर दिया – ठीक है , मैं परीक्षा देने के बाद घर के लिए निकलूंगा !
परीक्षा देने के बाद फोन किया तो पता चला कि मुझे बेटा हुआ है . मैं अंदर ही अंदर बहुत खुश था .
यह बात मैंने अपने किसी मित्र को न बताया और मन ही मन हरषाता हुआ घर के लिए ट्रेन पकड़ा .
उत्सुकता बस मैं बीच -बीच में फोन करता रहा . उसी समय मेरी साली ने फ़ोन किया बच्चे कि तबितत बिगड़ने लगा है . उसे लेकर बेतिया जा रहे है . मुझे चिंता हुई . पर मैनें सब ईश्वर पर छोड़ते हुए जल्द से जल्द घर पहुचने के लिए उत्सुक हुआ . जब मैं बेतिया हॉस्पिटल पंहुचा तो पता चला कि वे लोग बच्चे को लेकर पटना जा रहे हैं .भैया ने फोन किया कि घर जाकर रूपया लेकर मेरे खाता में डालो . मैं घर गया और पैसा लेकर बेतिया आया , जहाँ भाभी के माँ का ऑपरेशन हुआ था . कुछ समय बाद मुझें अचानक रोने का मन किया , मैंने सोच कि खाना खाए काफी देर हो गया हैं , इसीलिए ऐसा हो रहा हैं ! एक बार फिर मेरी साली ने फोन किया और कहा पता कीजिये कि वे लोग कहाँ हैं और बच्चा कैसा हैं ! मैंने फोन किया पर किसी ने मुझें कुछ नहीं बताया . कुछ देर बाद मेरे ससुर जी ने फोन किया और कहा कि बच्चा नहीं रहा ,- संजय ने फोन किया था . सभी लोग सुनते ही रोने लगे और मैं भी , पर मर्दों कि तरह . तभी मेरी भाभी के भाभी ने दीदी से कहा कि आपकी भाभी आप को छत पर बुला रही हैं

शाम ७ बजे ( लगभग ) बच्चे को लेकर बेतिया बहुचे . मेरी माँ चिल्ला – चिल्ला कर रो रही थी .मैंने माँ को धीरज धराया और कहा चुप हो जाओ, ईश्वर की यही मर्जी हैं . भैया ने मुझें बच्चे को देखने को कहा मैंने एक नज़र देखा और कहा मेरे नज़रो से इसे दूर कर दीजिये , जो मेरा नहीं मैं उसका नहीं ! मेरा इतना कहते ही सब लोग मिलकर बच्चे को बेतिया के रामरेखा में दफना दिए सभी लोग वापस आकर नहाने लगे . मैनें अपने बड़ी सॉस और ससुर को रोकने की कोशिश किया . इस पर मेरी बड़ी सासु माँ ने मेरे ससुर जी से कहा कि ठीक हैं मैं यहाँ से नहीं जाउंगी तो न नहाऊगी – न खाऊँगी ! यह बात मुझें बहुत बुरी लगी . अब उनलोगों को रंजन के मामा जी के यहाँ जाने दिया . रात के १०:०० बजे होंगे जब मेरा मुंडन हो रहा था . ज्योही नाई ने मेरे सर पे चाकू रखा मैं सहम गया , मुझें लगा कि मैनें घोर पाप किया हैं जिसका सजा मिल रहा हैं . मैं मुंडन के बाद वापस आया और नहाने के बाद सोने चला गया . कुछ देर बाद मुझें जगाया गया और खाने को कहा गया . मुझें न खाने से सभी लोग भूखे रह जाते इसीलिए मैंने थोड़ा खाना खाया और फिर सो गया . दूसरे दिन जब वहां से घर आना था तो मेरी अपनी भाभी ने मेरी माँ को नयी साड़ी पहनाने लगी . माँ ने मना कर दिया .इसपर भाभी साड़ी लेकर अपनी माँ के पास गयी . उनकी माँ ने धीरे से कान में फुसफुसाया , जहाँ तक मेरे समझ में आया कि वो मेरी माँ को गाली दे रही हैं . मैंने वो साड़ी खींचकर गैस चूल्हे पर जला दिया और बिना खाए ही वहां से निकर कर अपने बड़ी सासु माँ के बेटी के घर चला गया . वहां पहुचने पर भैया ने फोन किया कि तुम कहा हो और रुपया कहाँ हैं ? मैनें उन्हें बताया कि रूपया मेरे पास है और मैं अनिल भैया जी के घर हूँ . मुझें लग रहा था कि मैं अपना संतुलन खो दूंगा .किसी तरह से मैं और मेरी बड़ी सासु माँ वहां से रामनगर बस से पहुंचे .उसी समय मेरी पत्नी नहायी और नहाने के बाद मुझें पकड़ कर रोने लगी .

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