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समझ कक़ीक़त की

कविता
कविता
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ओ मोरी प्यारी जवानी !
क्यों इतना इतराई हो ?
क्या हो रहा हैं तेरे अंदर ?
जो इसतरह रूप बनाई हो !
क्या रूप का घमंड है तुम्हें ?
या ,यौवनापन का नाज़ है ?
बलखाती फिरती हो क्यों ?
कितना बदल तेरा अंदाज़ है ?
कब तक तू रहेगी ?
क्या तेरी कहानी हैं ?
वर्षा के पानी जस भ जाओगी !
मिट जाएगी तेरी निशानी .
चाहने वालों पर नाज़ करती हो ?
या , उन्हें बर्बाद करती हो ?
बताओ तेरे अंदर है क्या ?
किस पर तुम मरती हो ?
न चाहती हो बताना तो बताना छोड़ दे .
या , छोड़ दे इसतरह बलखान !
उस पति को याद कर ले पगली .
जिसके पास अंत में है जाना .
अभिषेक अनंत

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