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अलग पहिचान

कविता
कविता
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मन की ही सुन कदम बढ़ाएं
मन में ,बस , सुविचार ही लाएं
सफलता का परचम लहरेगा
कठिन परिश्रमी ही सफलता पाएं .

जो सम्बंधित हो उसे करते जाएं
प्रतिबंधित को ना हाथ लगाएं
सब कुछ ठीक ठाक चलेगा
सुकर्म में अनवरत लग जाएं .

गीता ने यही समझाया हैं –
बस , कर्म ही तेरे हाथ आया हैं ,
कर्म करो फल जरूर मिलेगा :
अकर्मक सदा पछताया हैं .

केवल सफल आदमी ही नहीं –
सफल होने के रहस्यों को भी जानो .
यहाँ तक कैसे आ गए वो ,
बारीकी से ठीक -ठीक पहचानो .

अंत भला तो सब भला
सब लोग यही कहते हैं .
पर , दुनिया हमेशा याद रखती उनकों !
जो अपनी अलग पहिचान बनाएं .
अभिषेक अनंत

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