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यादों का झरोखा

mere vichar
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कभी कभी हम अपने अतीत में जाकर उन बातों को याद करने लगते हैं जो शायद आजकी  तेज़ दौड़ – भाग वाली जीवन में कहीं खो गयी या दब  गयी होती है, इसी अतीत की एक झलक आपके सामने रख रहा हूँ, जिसे अहमद  राही ने लिखा है, आशा करता हूँ की ये आपको भी किसी यादों के झरोखों में ले जायेगी,   

 

कोई  माज़ी  के  झरोखों  से  सदा  देता  है

सर्द  पड़ते  हुए  शोलों  को  हवा  देता  है !!

 

दिले  अफ्सर्दा   का  हर  गोशा  छनक  उठता  है

ज़हन  जब  यादों  की  जंजीर  हिला  देता  है  !!

 

हाले  दिल  कितना  ही  इंसान  छिपाए  यारो

हाले  दिल,  उसका  तो  चेहरा  ही  बता  देता  है !!

 

किसी  बिछड़े  हुए , खोये  हुए   हमदम  का  ख्याल

कितने  सोये  हुए  जज्बों  को  जगा  देता  है !!

 

एक  लम्हा  भी  गुज़र  सकता  ना  हो  जिसके  बगैर

कोई  उस  शख्स    को  किस  तरह  भुला   देता  है !!
 

वक़्त  के  साथ  गुज़र  जाता  है  हर  एक  सदमा

वक़्त  हर   ज़ख्म  को , हर  गम  को  मिटा  देता  है !!

  

1.  माज़ी – बीता   हुआ  समय   2. सदा –  आवाज़   3.  अफ्सर्दा -दुखदाई  4,  गोशा -हिस्सा

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