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क्या कुछ बदलेगा?

mere vichar
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आप में से अक्सर लोग मेरे इस लेख को पढ़ कर मुझे निराशावादी कहेंगे, और शायद अपने विषय को लेकर मै हूँ भी.
 
मै ऐसे विषयों पर कम ही लिखता हूँ जो कि “फ्लेवर ऑफ़ थे टाइम” होते हैं, यानि जिन पर मंच पर बहुत सारे लोग लिखते हैं, ज़रुरत ही नहीं होती क्योंकि आपको बहुत सारे पक्ष …………., पर इस बार लीक से हट कर उत्तर प्रदेश के चुनाव पर लिख रहा हूँ.
 
पहले   चरण के चुनाव हो चुके हैं और दूसरा आज होने जा रहा है, वोटिंग का प्रतिशत भी पिछले चुनाव से अच्छा है, जो कि बहुत अच्छी बात है पर मेरे मन में ये जिज्ञासा है कि क्या इस चुनाव के बाद कोई अंतर पड़ेगा? और मेरी  इस शंका का आधार भी है.
  
मै इकोनामिक टाइम्स कि एक रिपोर्ट देख रहा था जिसमे लिखा था कि पहले चरण के ८६७ प्रतियाशीयो   में से २८४ के एफिडेविट के आधार पर उनमे से १०९ ऐसे हैं जिनके आपराधिक रिकार्ड है और इसी डेटा ने  मुझे …………..
 
 इनमे से अक्सर लोग चुन कर सदन में आयेंगे, और फिर वही हमारे लिए नीतियां तय करेंगे, वो जिनको जेल में होना चाहिए, उन्हें ही बड़े बड़े  अधिकारी  सलाम ठोकेंगे.
 
 आज प्रदेश कि चार बड़ी पार्टियों में से “क” शासन में है, और बाकी “ख”, “ग”, और “घ” उसे गद्दी से हटाने के लिए जोर शोर से प्रयास कर रही है, पर क्या इनमे से कोई ऐसी है जिसे हम दूसरो से अलग मान लें,? किसी का चरित्र दुसरे से अलग है? एक कि नेता को अपनी और अपने परिवार के साथ हाथियों कि मूर्तियाँ  लगवाने में ही ………….., दूसरी जो के केंद्र में है उनके युवराज बड़ा प्रयास कर रहे हैं पर आज उनका “हाथ” जो कि आम आदमी का हाथ होने का दावा करता था, उसी हाथ से आम आदमी का गला जिस तरह घोटा जा रहा है, और उसी हाथ किन किन तरह के घोटालो में जुड़ा है वो जग ज़ाहिर है, एक पहलवान जी और उनके सुपुत्र  अपनी साइकिल को फिर से गद्दी पर देखना चाहते हैं, केंद्र को समर्थन देते हैं और प्रदेश में उन्हें गाली, एक खास धर्म के लोगो कि तरफ फिर से उनकी प्रेम दृष्टि पड़ी है ताकि इस बार सत्ता……, और अंत में वो पार्टी जो कि दूसरो से हट कर के होने दावा करती थी, पर उसका हाल अब क्या कहें- भ्रष्टाचार पर सबसे अधिक आवाज़ वही से उठ रही थी पर दूसरी पार्टी से निकले गए भ्रष्ट लोगो को पार्टी में लेने में उन्हें कोई हिचक नहीं हुई, और खुद उनके शासित प्रदेश में भ्रष्टाचार कम नहीं है. अक्सर उनके मौका परस्ती नज़र आ जाती है. हाल ये है कि आज किसी पार्टी को देख लें अक्सर में ऐसे लोग नज़र आयेंगे जो कि पहले किसी और में थे, किसी नैतिकता कि तो बात ही नहीं है अब,
 
 
कभी परिवार वाद केवल एक पार्टी कि खासियत थी पर अब कौन से पार्टी है जो कि अपने आपको इससे अलग कह सके? सब के परिवार वाले ……………..
 
 राजनीति से बढ़ कर अब कोई लाभ दायक  बिजनेस है ही नहीं, एक बार विधायक / सांसद  बन जाये तो फिर न जाने कितनी पुश्तें ………
 
 अब, जब ऐसे ही लोग फिर से चुन कर वापस आयेंगे ( जनता के पास विकल्प भी नहीं है क्योंकि अच्छे लोग राजनीति में जाते नहीं या बेचारे हिम्मत ही नहीं करते और जाने के बाद वो भी …………, और जनता के पास सांपनाथ और नागनाथ ही जैसे विकल्प  होते हैं) तो फिर क्या बदलेगा, और इसी लिए मै फिर से सोच रहा हूँ कि इस चुनाव से क्या बदलेगा?
क्या सच में कुछ बदलेगा?

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