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आजकल फिर मेरी रातों की नींद उड़ी हुई है.
एक बेचैनी है , व्याकुलता hai , की कैसे ये समय कटे , ये इतना धीर धीरे क्यों …..?
ये कोई नयी बात नहीं है बल्कि हर ग्यारह महीने के बाद ऐसा ही होता है , तब – जब की मै अपनी वार्षिक छुट्टी पर अपने देश, अपने घर वापस जाता हूँ .
एक ऐसा अनुभव जिसे केवल वही जानता होगा जो की स्वयं या अपनों से दूर , अपने नगर /शहर से दूर , अकेला जीवन बिता रहा होगा .
समय कटता नहीं , दिल संभालता नहीं , बेचैनी …….
वैसे तो मै रात को बिस्तर पर पड़ने के साथ ही नीद में डूब जाता हूँ पर इस पीरियड में , ये नहीं हो पता . ध्यान चला जाता है की कैसे मै घर पहुंचूंगा , कैसे सब से मिलूँगा , कैसे दोस्त , सम्बन्धियों से …………….. बहुत सारे विचार जो की ………………..
दिन तो काम की व्यस्त में, आफिस में कट जाता है पर रात , रात का क्या किया जाये … …….?
अपना देश , अपना ही होता है , हम कितने भी साल बहार काम कर लें पर हम ये जानते हैं की हमारी जड़ें , हमारी शाखाएं , हमारी पत्तियां … ….सब तो वहीँ हैं , लाख बुरे हो वहां पर , लाख कमिय हो वहां पर और लाख आराम हो यहाँ पर, लेकिन फिर भी वो हमारा है , हमारा अपना, पूरे विश्व में कोई जगह उससे अच्छी हो ही नहीं सकती , मेरा देश , मेरे लोग , मेरी गालिआं , बाज़ार , चौपाल ….… इनसे अच्चा कुछ हो ही नहीं सकता ….….
बस किसी तरह से मै बाकी दिन काटने की प्रतीक्षा में …. …..
दुआ करें की वो दिन जल्दी आयें जब मै अपने देश की मिटटी की सोंधी – सोंधी महक .. ……….
प्रार्थना करेंगे ना आप मेर लिए ?
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