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ये बहेलिये फिर से जाल बिछाने आए हैं

kavita
kavita
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पाँच बरस के बाद पुनः पटियाने आये हैं !
उलझे दिल के तारों को सुलझाने आए हैं !!
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जोड़े हाथ दिने- दुपहरिये मारे हैं फिरते
चाटुकार-चमचे झुक-झुककर चरणों में गिरते
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वही पुराने झूठे कोरस गाने आए हैं !
पाँच बरस के बाद पुनः पटियाने आये हैं !!
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आश्वासन के चिकुड़-जाल में फिर से फाँसेंगे
सूखी आँखों में आशा के आँजन आँचेंगे
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बुझे हुए सपनों के दीप जलाने आए हैं !
पाँच बरस के बाद पुनः पटियाने आये हैं !!
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अभी नाँच हैं रहे बाद में तुझे नचाएंगे
बात-बात पर संसद में फिर तुझे भुनायेंगे
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ये बहेलिये फिर से जाल बिछाने आए हैं !
पाँच बरस के बाद पुनः पटियाने आये हैं !!
=
भड़काऊ भाषण दे – दे दंगे करवाएंगे
विस्थापित लोगों के फिर वे घर बनवायेंगे
=
यही वचन फिर आज यहाँ दुहराने आए हैं !
पाँच बरस के बाद पुनः पटियाने आये हैं !!
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जो भी मांगो आज नहीं कल सबकुछ दे देंगे
कई दलों के दलदल में मिल दाल गलायेंगे
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बहुरूपिये ये फिर से तुझे फँसाने आए हैं !
पाँच बरस के बाद पुनः पटियाने आये हैं !
= – आचार्य विजय ‘ गुंजन ‘

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