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फागुनी कुंडलिया

kavita
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होली पर है चढ़ गया राजनीति का रंग
राजनाथ ने कर दिया टंडन को बदरंग ।
टंडन को बदरंग मनोहर हो बेगाने
चले कानपुर के लोगों में जोश जगाने ।
कह गुंजन कवि खुशियों से भर जाये झोली
लहर-लहर सबके सिर लहराए होली।।
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बन्दर बैठ दरख़्त पर रहा डाल झकझोर
बचे-ख़ुचे को बिग रहा है जमीन पर तोड़
है जमीन पर तोड़ गिरे चारों चित खाने
संभल संभल फिर रक्तबीज सा सीना ताने
कह गुंजन कविराय केजरी मस्तकलंदर
सबके सिर पर नाँच रहा है चढ़कर बंदर
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लालू जी को ले डुबा वंशवाद का प्यार
साथ छोड़कर चल दिया बहुत पुराना यार
बहुत पुराना यार गिरा जा रामशरण में
मिला पाटलीपुत्र परमसुख तपश्चरण में
कह गुंजन पाकर प्रसाद हैं मस्त कृपालू
कुण्डलिया पढ़ पढ़कर अब हैं रोते लालू
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मोदी जी मदमस्त हैं पा मोदी का प्यार
अश्विनी औ गिरिराज को रहे दुलत्ती मार
रहे दुलत्ती मार किया भोला से सौदा
सदाचरण को त्याग बेरहम बनकर रौंदा
कह गुंजन कवि नहीं यहाँ की जनता बोदी
संभलो अब भी समय शेष है चेतो मोदी
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राग रंगों का त्यौहार यह होली आप सभी की झोली में
खुशियों के रंग भर दे इन्हीं कामनाओं व भावनाओं के साथ
आप सभी का अज़ीज

आचार्य विजय गुंजन

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