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कई मनोरम सुन्दर सपने

kavita
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कुछ ऐसे भी क्षण होते हैं
स्वप्न सुनहले
मन बोते हैं !

रागों के अनुप्रास शब्द सम
और विषम स्वर के
संगम हैं ,
थिरक ह्रदय के रंग-मंच पर
रहे भाव के सुर-
सरगम हैं |

पुलक लगाते महानन्द के
सिन्धु-अतल में
नित गोते हैं !…कुछ ऐसे …….

सिंदूरी सौंदर्य छिटकते
जब अनुपम वैभव
ले अपने
अंतर में तब सजने लगते
कई मनोरम
सुन्दर सपने |

इन्द्रधनुष के सात रंग में
डूब-डूबकर
सुधि खोते हैं ! …..कुछ ऐसे ……

शुभ्र चांदनी जलधि-तरंगों पर
जब अपने डग
भरती है ,
लगता तब जलपरी सँवर
कोई थल पर विचरण
करती है |

अक्षर-अक्षर-शब्द-शब्द बन
भाव-वितल में
पग धोते हैं !
कुछ ऐसे भी
क्षण होते हैं !!

आचार्य विजय ” गुंजन ”

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