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कविता (चुनावी हलचल)

kavita
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“चुनावी हलचल”
आज सुख-समृद्धि
जन-जन से हुई है दूर |
हो गयी फिर से शुरू है
चुनावी हलचल,
घोषणाओं में खुलेंगे
कारखाने-कल |
जोड़कर कर
मारते-फिरते चलेंगे क्रूर |
आज सुख-समृद्धि
जन-जन से हुई है दूर |
स्वार्थ बोलेगा
हसेंगे दानवों के दल,
आग में फिर से
घिरेंगे सुहाने जंगल |
फिर कई जीवित नए
होंगे यहाँ ‘चानूर’ |
आज सुख-समृद्धि
जन-जन से हुई है दूर |
स्यन्दिकाओं में दिखेंगे
रेंगते कीड़े,
वे पुनः अपने घरों में
जरेंगे हीरे |
झूठ देखेगा सदा
सच को निगाहें घूर |
आज सुख-समृद्धि
जन-जन से हुई है दूर |

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