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कहो काव्यसुन्दरि…..

kavita
kavita
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beautiful-indian-women-painting-artकहो काव्यसुन्दरि ! तेरे किन-किन अंगों पर गीत लिखूँ !
अधर या कि नयनों में पलते पल-पल की प्रतिप्रीत लिखूँ !!
=
मुखमंडल पर मंदस्मित सी
भाव भरी भाषाएँ ,
हर क्षण बनती मिटतीं
क्षणभंगुर सी प्रत्याशाएँ |
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उष्ण-उष्ण उच्छ्वसित तुम्हारी साँसों का संगीत लिखूँ !
कहो काव्यसुन्दरि! तेरे किन-किन अंगों पर गीत लिखूँ !!
=
धवल दंतपंक्तियाँ हास की
रचतीं नई ऋचाएँ ,
भवें तुम्हारी इंद्रधनुष की
गढ़तीं प्रत्यंचाएँ |
=
चंद्रवदनि ! बोलो छंदों की हार लिखूँ या जीत लिखूँ !
कहो काव्यसुन्दरि! तेरे किन-किन अंगों पर गीत लिखूँ !!
=
तन की रग-रग रजनीगंधा
अमलतास सा मन है ,
अलक राशि उलझी-उलझी यों
ज्यों अम्बर में घन है |
=
पीपल की छइयां – पनघट पर पलते पल की रीत लिखूँ
कहो काव्यसुन्दरि! तेरे किन-किन अंगों पर गीत लिखूँ !!
=
अनुपम है सौंदर्य तुम्हारा
अनुपम सी है शैली ,
दिशा-दिशा पुलकित कपोल की
अरुणाभा है फैली |
=
लहराती रेशम सी तेरी ज़ुल्फों का संगीत लिखूं !
कहो काव्यसुन्दरि! तेरे किन-किन अंगों पर गीत लिखूँ !!
आचार्य विजय ‘ गुंजन ‘

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