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यहाँ क्रौंच – क्रंदन

kavita
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कहाँ कुछ बचा है जिसे है जोगाना !
अमन चैन का हो रहा अपहरण है
जिधर दृष्टि डालो क्षरण ही क्षरण है
नहीं ज़िन्दगी अब सहज है कहीं पर
यहाँ हर कदम पर मरण ही मरण है
भयातंक में जन रहे जी रोजाना !
कहाँ कुछ ………………….!!
कभी जो चमन रात -दिन था चहकता
वहां तोप गोले गरज अब उगलता
नहीं झुण्ड सैलानियों का यहाँ अब
हुलस यान से इस ज़मीं पर उतरता
सफर हो गया अंत कल का सुहाना !
कहाँ कुछ ………………..!!
दुखी -रुग्न -लाचार है आज चन्दन
उजड़ता यहाँ जा रहा आज नंदन
सुपर पक्षियों की कुजन की जगह पर
सुनाई रहा पड़ यहाँ क्रौंच -क्रंदन
वतन का बदन हो गया है रोगना !
कहाँ कुछ ………………!!
समाधान की अब जगह विष वमन है
न निर्माण है ध्वंस का आचरण है
यहाँ अब दुराचार का बोलबाला
पदारूढ़ जो , कर रहा नित गबन है
चतुर चौर्य से चल रहा है चोराना !
कहाँ कुछ बचा है जिसे है जोगाना !!
आचार्य विजय ‘गुंजन ‘

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